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माष्टर साहब शिक्षा देने में प्रथम श्रेणी के विद्वान थे, लड़के के मन में श्रद्धा को देखकर उन्हें अधिक सन्तोष हुआ और हंसते हुये मार साहब ने लड़के से कहा- प्यारे, भोले भावुक, कितनी भूल खा रहे हो, तुम अभी अपने दिल की शंका को छोड़ दो और मैं जो कुछ कहता हूँ उसे सावधान होकर सुनो, फिर मनन करो तो ये तुम्हारी शंकायें थोड़े ही दिनों में दूर हो जायगीं, जब कुछ आगे पढोगे । लड़का सुशील, श्रद्धालु और होनहार था । लड़का ने मार की बातें मानली और विनीत होकर कहा कि – अच्छी बात, अब आप रेखा को अच्छी तरह समझाने की कृपा करें । माष्टर ने तुरत ही कागज पर पेन्सिल लेकर एक सीधी लकीर श्र -उ-- -ई ऐसी खींच दी और लड़के से कहा- देखो, यह 'श्र उ ई' रेखा है । श्र और ई ये दो चिन्ह रेखा का प्रान्त ( छोर या आखरी जगह ) है जहां बिन्दु होती है और उ रेखा का मध्यस्थान ( बीच की जगह ) है । इन बातों को मेरे कथनानुसार तुम पहले मानलो और श्रागे पाठ को लेते जाओ तो शीघ्र ही तुम्हें रेखा का ज्ञान हो जायगा । लड़के ने वैसा ही किया जैसा मार ने कहा, अनन्तर थोड़े ही दिनों में वह लड़का रेखा गणित में प्रवीण हो गया और उसकी सारी शंकायें जाती रहीं । फिर दादाजी ने छज्जूराम श्रार्य से कहा कि सुनिये छजूरामजी, जैसे उस लड़के को पहले गुरु की बात माननी पड़ी और पीछे शीघ्र ही रेखा का ज्ञान और रेखागणित का ज्ञान हुआ, उसी तरह श्रागम शास्त्र और
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सज्जन पुरुषों से कही हुई मूर्त्ति पूजा को जो कोई श्रद्धा से
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मानता है तो थोड़े ही दिनों में उसका सात्विक स्वभाव बढ़ने
लगता और कल्याणमय ज्ञान का उदय होने लगता जिससे
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