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ध्यान देकर सुनिये - स्वामीजी ने 'सत्यार्थ - प्रकाश में fear है कि मन को स्थिर करने के लिये अपनी पीठ की हड्डी में ध्यान लगाना चाहिये। यह बात 'सत्यार्थप्रकाश' के. सातमां समुल्लास में शौच सन्ती-पतपः स्वाध्यायेश्वरः ।" इस योग दर्शनसूत्र की व्याख्या में लिखी है और वहां उपयुक्त सूत्र के विशेष व्याख्यान में लिखा है कि "जब मनुष्य उपासना करना चाहे तब एकान्त देश में आसन लगा कर बैठे और प्राणायाम की रीति से बाहरी इन्द्रियों को रोक कर मन को नाभिदेश में रोके वा हृदय, कण्ठ, नेत्र, शिखा श्रथवा पीठ के मध्य हाड ( हड्डी ) में मनको स्थिर करे" । अब यहां शोचने और समझने की बात है कि स्वामीजी की हड्डी- पूजा से तो भगवान् की 'मूर्त्ति पूज' कहीं अच्छी है, क्योंकि पीठ की हड्डी में ध्यान करने से जो लाभ होगा उससे हजारों गुण अधिक लाभ परमात्मा की मूर्ति में ध्यान को लगाने से होगा, बस, इससे यह सिद्ध हुआ कि मूर्त्ति पूजा से कोई भी व्यक्ति अछूता नहीं है और प्रत्येक श्रार्य का यह परम आवश्यक कर्त्तव्य है कि वे प्रतिदिन भव्य -- भाव-भक्ति से अपना इष्टदेव की मूत्ति की पूजा करें ।
आर्य-कुछ विनीत होकर, महाराज, निराकार चेतन ईश्वर का बोध साकार जड़ ( मूत्ति ) से कैसे हो सकता ?
दादाजी - सुनियेजी, आप इस बात को तो अच्छी तरह जानते हैं कि जब लड़के स्कूल में पढ़ने के लिये जाते हैं तब
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