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(२२) को भी नहीं दीखती, क्योंकि देखने की शक्ति तो प्रांख में ही है, जो कि जड़ है, इसलिये चेतन आत्मा को जड़ मूर्ति को अपनाने से बहुत लाभ होता है। और भी सुनो कि-आखें स्वयं अपने को नहीं देखती मगर कोई, उत्तम शीशा (दर्पण) को देखे तो उसमें उसकी आखें, मुह, नाक, कान, श्रादि साफ साफ दिखलाई देगी, अब समझो कि चेतन श्रात्मा और जड़ पाखें इन दोनों को एक तीसरी जड़ वस्तु से कितना लाभ होता है। इसी तरह और भी समझो कि-तुम में देखने की शक्ति १-से-दो मील तक की है, अब यदि तुम्हारे ांस्त्र में दूरवीक्षण यन्त्र लगा दिया जाय तब तुम पहले की अपेक्षा दश गुना बीस गुना या पचाश गुना भी दूर तक देख सकोगे, अब शोचो और समझो कि तुम्हारी चेतन प्रात्मा तुम में विद्यमान है और उसकी सहायता करने वाली जड़ अांखें भी तुम्हारे पास हैं मगर एक तीसरी जड़ वस्तु की सहायता तुम्हें दी गई तब तुम्हारे दीखने की शक्ति कितनी बढ़ गई, इसलिये मूर्ति-पूजा करने से चेतन श्रात्मा को बड़ी शान्ति का लाभ
होता है। काकाजी-कुछ बेग में श्राकर, महाराज, स्वामी दयानन्द
सरस्वती श्रादिक महर्षि ने मूर्ति-पूजा को नहीं
माना इसलिये हम भी नहीं मानते हैं। दादाजी-यह आपका कहना कि-स्वामी दयानन्द सरस्वतीजी
मूर्ति पूजा को नहीं मानते थे, सरासर झूठ है,
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