________________
( १६ )
संस्कार जम जायगा, नतीजा यह होगा कि वे मरने के बाद पत्थर हो जायेंगे, इसलिये मूत्ति-पूजा से लाभ की जगह हानि ही दीखती है ।
दादाजी -कुछेक मुसकिरा कर श्रहह ! आपका यह बे नजीर श्रम और दूरदर्शी दृष्टि कैसी ? जरा दिल में गौर करके शोचें और समझें कि - पैसा, दो पैसा, श्रीना, दो आना, रुपया, नोट और टीकट आदि सब ही चीजें जड़ हैं, और राजा से रंक तक सभी प्रति दिन इसका व्यवहार करता है और यह बात तब से चली आ रही है जब से दुनियादारी है, अब आपके कथनानुसार - " जड़ की सेवा करने से मरने के बाद चेतन भी जड़ हो जाता है " तो आाज, आप लोग सब के सब लोहो, पीतल, चान्दी, सोना या कागज के रूप में, अड़ रूप ही होजाते मगर ऐसा दीखने में नहीं आता, बल्कि प्रत्येक बारह वर्ष के बाद मर्दन सुमारी में लाखों तक हिन्दुस्तानी जन संख्या बढ़ती है, इसलिये मूत्ति पूजा से कोई भी जड़ नहीं होता अपितु उत्तम गति होती है ।
काकाजी - कुछ तेज होकर, महाराज, उस जड़ मूर्ति में चैतन्य ईश्वर की कल्पना बेकार है, अच्छी कल्पना तो यह कि उस सर्व व्यापक ईश्वर के निराकार रूप की ही पूजा की जाय ।
दादाजी - वाहरे काविल, भला बताओ तो सही कि निराकार को तुम अपना ध्यान में कैसे ला सकते और जब
Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com