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(५८) ऐसा कोई वर्ष नहीं वीतता कि आपश्री की बनाई हुई कुछ पुस्तके प्रकाशित नहीं होती हों। ऐसा क्यों न हो ! जब कि श्रापश्री की उत्कट अभिरुचि साहित्य प्रचार की ओर है। इस वर्ष ये पुस्तकें प्रकाशित हुई :
१००० जैन जाति निर्णय प्रथमा द्वितीयाङ्क । १००० पश्च प्रतिक्रमण सूत्र । १००० स्तबन संग्रह चतुर्थ भाग-तृतीय वार ।
३००० तीन सहस्त्र प्रतिऐं।
पीपाड से विहारकर आप कापरडाजी की यात्रा कर वीसलपुर पधारे । यहाँ पर श्राप के उपदेश से जैन श्वेताम्बर पुस्तकालय की स्थापना हुई। शान्तिस्नात्र पूजापूर्वक मन्दिरजी की श्राशातना मीटाइ गइ थी। फिर श्राप पालासनी, कापाडा और बीलाडा पधारे यहाँपर चैत्र कृष्ण ३ को स्थानक० साधु गम्भीरमलजी को जैन दीक्षा दे उनका नाम गुणसुन्दरजी रक्खा। वहाँ से पिपाड़ पधारे। यहाँ श्रोलियों का अठ्ठाइ महोत्सव बड़ ही धामधूम से हुश्रा। तत्पश्चात् श्राप प्रतिष्ठा के सुअवसर पर वगड़ी पधारे बाद सीयाट सोजत खारिया होते हुए बीलाड़े पधारे । विक्रम संवत् १९८४ का चातुर्मास (बीलाड़ा)।
आपश्री का इक्कीसवाँ चातुर्मास बीलाड़े हुआ। बीलादे के श्रावकों की अभिलाषा कई मुद्दतों बाद अब पूर्ण हुई । उन्हें भाप जेसे तत्ववेत्ता, प्रगाढ पण्डित एवं ऐतिहासिक अनुसन्धान, व उपदेशक उपलब्ध हुआ यह उन के लिये परम अहोभाग्य की
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