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दोहा- -जयवन्ता जिन शासने, विचरो गुरु उजमाल ।
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देश पधारो हमत, कर जोड़ी कहे कुशाल ॥ " तीन चतुर्मास के दिग्दर्शन से विक्रम संवत् १६८० का चतुर्मास ( लोहावट ) आपश्री का सत्रहवाँ चतुर्मास इस वर्ष लोहावट ग्राम में हुआ | व्याख्यान में आप उसी रोचकता से भगवतीजी सूत्र फरमाते थे । श्रोताओं को आप का व्याख्यान बहुत कर्णप्रिय लगता था । सूनजी की पूजा अर्थात् ज्ञानखाते में १८ || मुहर तथा ५५०) रुपये रोकड़े सब मिलाकर १०००) रुपये से पूजा हुई थी । वरघोड़ा बडे ही समारोह से चढाया गया था । इसमें फलोधी के लोगोंने भी अच्छा भाग लिया था.
आपने इस चतुर्मास में दो संस्थाएँ स्थापित कीं। एक तो जैन नवयुवक मित्र मण्डल तथा दूसरी श्री सुखसागर ज्ञान प्रचारक सभा | वर्तमान युग सभा का युग है । जिस जाति या समाज के व्यक्तियों का संगठन नहीं है वे संसार की उन्नति की सरपट दौड़ में सदा से पोछी रही हैं । अतएव जैन समाज में ऐसी अनेक संस्थाओं की नितान्त आवश्यक्ता है जिनमें युवक और बालक प्रथित होकर समाज सुधार के पुनीत कार्य में कमर कस कर लग्गा लगा दें ।
आप साथ ही साथ श्रावकों को धार्मिक ज्ञान भी सिखाया करते थे | आप के सदुपदेश से, भद्दे ढंग से होनेवाले हास्यास्पद
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