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छठा भाग १००० तथा सातवों भाग १०००, दशवेकालिक मूल सूत्र १०००, मेझरनामा ३५०० गुजराती भाषा में । इस प्रकार कुल ८५०० प्रतिएँ प्रकाशित हुई ।
गुरु महाराज का चातुर्मास सीनोर में था । गुरु महाराज जब संघ के साथ यहाँ पधारे तो आपश्री सामने पधारे थे। संघ का स्वागत खूब धामधूम से हुआ । गुरु महाराजने इच्छा प्रकट की कि मुनीम चुनीलाल भाई के पत्र से ज्ञात हुआ है कि ओशियां स्थित जैन छात्रावास का कार्य शिथिल हो रहा है अतएव तुम शीघ्र ओशियाँ जाओ, वहाँ ठहर कर संस्था का निरीक्षण करो । यद्यपि आप की इच्छा गुरुश्री के चरणों की सेवा करने की थी पर गुरु आज्ञा को शिरोधार्य करना आपने अपना मुख्य कर्त्तव्य समझ पादरा, मातर, खेड़ा, अहमदावाद, कडी, कलोल, शोरीसार, पानसर, भोंयणी, मेसाणा, तारंगा, दांता, कुम्भारिया
* गुजरात विहार के बीच प्राचार्य श्री विजयनेमीमूरि आ० विजयकमलसूरि आ• विजयधर्मसूरि आ० विजयसिद्धिसूरि आ० विजयवीरसूरि अ० विजयमेघसूरि मा० विजयकमलसूरि आ० विजयनीतिसूरि आ० सागरानंदमूरि आ० बुद्धिसागरसूरि उपाध्यायजी वीरविजयजी उ० इन्द्रविजयजी उ० उदयविजयजी पन्यास गुलाब विजयजी पं० दानविजयजी पं० देवविजयजी पं० लाभविजयजी पं ललितविजयजी पं० हर्षमुनिजी शान्तमूर्ति मुनिश्री हंसविजयजी मु० कर्पूरविजयजी आदि करीबन दो सौ महात्माओं से मिलाप हुआ । परस्पर स्वागत सम्मान और ज्ञानगोष्टि हुई कई महात्मा तो उपकेशगच्छ का नाम तक भी नहीं जानते थे मतः आपश्रीने नम्रत्ता भाव से प्राचार्य श्री स्वयंप्रभसूरि और पूज्यपाद रत्नप्रभसूरि का जैन समाज पर का परमोपकार ठीक तौर से समझाया जिस से सब के हृदय में उन महापुरुषों के प्रति हार्दिक भक्तिभाव पैश हुआ ।
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