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१००० श्री गयवरविलास ।
७००० प्रतिमा छत्तीसी । १००० सिद्धप्रतिमा मुक्तावलि | विक्रम संवत् १६७३ का चातुर्मास (फलोघी ) ।
श्रावकों के आग्रह को स्वीकारकर आपश्रीने फलोधी कसबे में अपना दसवाँ चातुर्मास किया। लोगों के हृदय में उत्साह भरा था । चातुर्मासभर पूर्व आनन्द बरता । प्रत्येक श्रावक प्रफुल्ल कन था | व्याख्यान में आप ' पूजा प्रभावना वरघोडा दिबड़े ही समारोह के साथ' भगवतीजी सूत्र मनोहर वाणी से सुनाते थे । साथ ही प्राप शिक्षा प्रचार का उपदेश भी देते थे जिस के फलस्वरूप श्राषाढ़ कृष्णा ६ को वहाँ जैन पाठशाला की स्थापना हुई। साथ ही में दो और महत्वशाली संस्थाऐं स्थापित हुई जो उस समय मारवाड़ प्रान्त के लिये अनोखी बात थी । साहित्य की ओर रुचि श्राकर्षित करने के उद्देश से फलोधी श्री संघ की ओर से रु. २०००) को - फण्ड से " श्री रत्नप्रभाकर ज्ञानपुष्पमाला की स्थापना बड़े समारोह से हुई । एक ही वर्ष में इस माला द्वारा २८००० पुस्तकें प्रकाशित हुई तथा जैन लाइब्रेरी की स्थापना करवा के नवयुवकों के उत्साह में वृद्धि की ।
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१००० गयवर विलास दूसरी बार । २००० दादा साहब की पूजा ! १०००० प्रतिमा छत्तीसी तीसरी बार । १००० चर्चा का पब्लिक नोटिस । २००० दान छत्तीसी । १००० पैंतीस बोल संग्रह ।
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