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बेले १०, तथा दो मास तक तो आपने एकान्तर तप आराधन किया था ।
सदुपदेश सुनाना ही साधुओं का कर्त्तव्य है, यह जान कर आपने १५ दिवस तक श्री दशवेकालिक सूत्र को व्याख्यान में पढ़ा | आपकी व्याख्यान शैली की मनोहरता के कारण श्रोताओं की तो भीड़ लगी रहती थी ।
चातुर्मास बीतने पर आपने सोजत से ब्यावर, खरवा तक विहार किया । फिर वहाँ से पीपाड़ वीसलपुर हो आपके कुटुम्बियों से आज्ञा प्राप्त कर आप पुनः ब्यावर पधारे । पश्चात् अपने अजमेर, किशनगढ़, जयपुर, छाडलु, टोंक, माधोपुर, कोटा, बूँदी, रामपुरा, भानपुरा, जावद, नीमच, निम्बाडा चित्तोड़, भीलाडा, इमीरगढ़, ब्यावर, पीपाड, नागोर और बीकानेर तक भ्रमण किया | आपके सदुपदेश के फलस्वरुप कई लोगोंने जीवनभर माँस मदिरा त्यागने का प्रण किया था । इस वर्ष के प्रथम पर्यटन में आपको अनेक प्रकार के कष्ट उठाने पड़े। एक बार तो ऐसी घटना हुई कि आप बाल बाल बचे । अटूट साहस एवं धैर्यताने ही आपके जीवन की रक्षा की। अपने पुरुषार्थ के बल से आपने, सारी कठिनाइयों को तृणवत् लमझ कर धर्म प्रचार के कार्य में रूचि पूर्वक भाग लिया ।
विक्रम सं. १६६५ का चातुर्मास ( बीकानेर ) | सोजत में गत चातुर्मास में आपने फूलचन्द्रजी के पास ज्ञा
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