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नैतिक, आत्मिक, शारीरिक तथा सामाजिक जीवन किस प्रकार बलवान और चारित्रवान हो सकता है।
आप का व्याख्यान हृदयग्राही तथा ओजस्वी भाषा में होता है जिस में सारगर्भित धार्मिक भाव लबालब भरे होते हैं । आप की वाक्पटुता से आकर्षित हो कई व्यक्तियोंने सांसारिक प्रलोभनों तथा कुवृत्तियों का निरोध किया है । आप के वचनामृतों के पान से कितना जैन समाज का उपकार हुआ है वह बताना अकथनीय हैं । आपने मारवाड़ जैसी विकट भूमि में अनेक वादियों के बीच विहार कर एकेले सिंह की माफिक जैनधर्म और जैन ज्ञान का बहुत प्रचार किया है। आप के व्याख्यान के मुख्य विषय ज्ञान प्रचार, मिथ्यात्व त्याग, समाज सुधार, विद्याप्रेम, जैनधर्म का गौरव, आत्मसुधार, अध्यात्मज्ञान, सदाचार, दुर्व्यसन त्याग तथा अहिंसा प्रचार है । आप का भाषण मधुर, हृदयग्राही, ओजस्वी चित्ताकर्षक, प्रभावोत्पादक एवं सर्व साधारण के समझने योग्य भाषा में होता है । त्याग की तो आप साक्षात् मूर्ति हैं। ज्ञान प्रचार द्वारा आत्महित साधन करना आप के जीवन का परम पवित्र उद्देश है । अर्वाचिन समय में जैन साहित्य के अन्वेषण प्रकाशन आदि अल्प समय में जितनी प्रवृत्ति आपने की है शायद ही किसी औरने की हो।
किस किस प्रान्त में आपने कितना कितना उपकार किया है इसका वर्णन पाठक निम्न लिखित चातुर्मास के वर्णन से मालूम करेंगे। पूर्ण वर्णन तो इस संक्षिप्त परिचय में समाना असम्भव है।
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