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वक्त कम है, और जीवदया सबको मंजूर नजर आती है, लेकिन उसके लिये कुछ करिये तो खूबी है. इस लिये एक अरज है कि इस मजलिसमें करीब चार या पांच हजार लोग है, हरेकके घरमें कमसे कम दो बहियें एसी होगी जिसपर चमडेका पूठा चढा दुवा है, याने करीब दस हजार बहियोंके लिये करीब एक हजार पंचैंद्री जीवोंका चमडा काममें आता है; अगर सब आयंदेको यह छोड़ दें तो कुछ फायदेकी उम्मेद पडती है. उम्मेद है कि यह कहना पसंद करके अमलमें लावेंगे.
अमदावादवाळा डॉ. हरखचंद अमुलखचंद शाहनुं भाषण.
" स्वामी भाईओ तथा गृहस्थो!
आ बीजी जैन कॉन्फरन्सना मांगळीक कार्यना आरंभमां जे उत्साहां काम शरु कयु छे, ते दिन प्रतिदिन संगीन पाया उपर योग्य सुधारा करवाथी चोकस हमेशना माटे लाभकारक थशे. एम मारी तेमज सघळा हाजर थयेलानी पूर्ण मान्यता छे. - दरेक मोटां कार्य शरु थाय छे, तेनुं लांबे वखते सारं अगर खराब परिणाम मालुन पडे छे, पण तुरतमां तो जुदा जुदा मतो बंधाय छे. अत्यारे ते सामुं नहीं जोतां संगीन रीते आरंभेलु काम धीरजथी खंत राखी परिपूर्ण करवं, ते आपणी पहेली फरज छे. हालना वख तमां आपणा भिन्न भिन्न मतोने लीधे पडती दशा मालुम पडे छे, तेनुं कारण मोटी मोटी वातो करी बेसी रहेवार्थाज छे; पण तेनो अंत लाववानो आ प्रात:काळ शरु थयो छे.
__ आ कॉन्फरन्से केटलाक विषयो जैन लोकोनां आचरण तथा स्थिति सुधारवा माटे पसंद करेला छे, ते मांहेना एक विषय जीवदया विषे मारो अभिप्राय आप साहेबो हजुर रजु करूं छं.
पशु- पोषण केम करवू, पशुवध केवी रीते अटकाववो, अन केम तेमनां दुःख निवारण करवां, ए बाबतो उपर हुं बोलवा मागुंछु.
पशुओ केवी रीते सुखी जींदगी भोगवी शके. दरेक केळवायेला तथा आर्यधर्मने माननारा माणसनी दरेक जीव प्रत्ये दयानी लागणी जन्मीज होय छे. कोईपण जीवने हेरान करवू मारवु अथवा घात करवी, ते पापरुपे गणे छे. जैनधर्ममां तीर्थकर महाराज तथा ज्ञानीओए सिद्ध करी आपेल छे, के जीवदया ए मोक्ष साधवानुं प्रथम पगीयु छ, अने 'अहिंसापरमोधर्मः' ते जैन धर्मनो प्रथम सिद्धांत छे. जीवना जैनधर्ममां पांच मोटा विभाग करेला छे. जेवा के:
१ एकेन्द्रिय-एक इन्द्रिवाळा. २ वेइन्द्रिय—बे इन्द्रिवाळा. ३ त्रीइन्द्रिय-त्रण इन्द्रिवाळा. ४ चउरेन्द्रिय-चार इन्द्रिवाळा. ५ पंचेन्द्रिय-पांच इन्द्रिवाळा.
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