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(९४) मी. चिमनलाल लल्लुभाईनुं भाषण. “ महेरबान प्रेसिडन्ट साहेब, जैन बंधुओ, सुज्ञ सद्गृहस्थो अने बानुओ!
बीजी जैन श्वेतांबर कॉन्फरन्सना आगेवान गृहस्थो तरफथी “ अहिंसा" ना विषय उपर विवेचन करवा मने आज्ञा थई छे. ए विषय एवो गहन, प्रौढ अने महत्ववाळो छे के, एना उपर यथेच्छ अने वास्तविक विवेचन करवा मारा जेवा अल्प बुद्धिना माणसने शक्ति न होय ते स्वाभाविक छे, अने तेथी करीने मारा करतां सारा अनुभवी अने विद्वान् वक्ताने ए विषय सोपवामां आव्यो होत, तो ते वधारे सारं विवेचन करी शकत. वळी तेनी साथे में आजे बावीश वर्षथी वक्तानो धंधो छोडी श्रोतानो धंधो स्विकारेलो छे; अने आपवामां आवेलो समय पण थोडो छे, तेथी सदरहु विषय उपर योग्य विवेचन हुं करी शकीश एम आशा नी, अने जे कहेवामां आवशे ते पण खामी भरेलु हशे; तोपण मारा उपर थयेली आज्ञा अनुसार हुं जे कहीश, तेमां जे कांई खामी मालुम पडे ते दरगुजर करवा कृपा करशो. ___'अहिंसा परमो धर्म:' ए जैनधर्मनो मुख्य सिद्धांत छे. ए सिद्धांत साबित करवा विशेष पुरावानी जरुर नथी, कारणके आ सृष्टिनी सपाटी उपर प्रवर्तता दरेक धर्ममां तेनो स्विकार थयेलो छे. दरेक धर्मावाळाए केवे केवे प्रकारे एनो अंगीकार करेलो छे, ए बाबत विवेचन करवा जेटलो आजे वखत नथी, तोपण एटलं कहेवू बस छे के सामान्य रीते दरेक धर्ममां एनो स्विकार थयेलो छ. योगकौस्तुभ नामना ग्रंथमां यमनियमना दश प्रकार बतावेला छे, तेम पातांजल सूत्रमा पण यमना पांच प्रकार अने नियमना पांच प्रकार ए प्रमाणे दश प्रकार बतावेला छे, तेमां अहिंसा मुख्य प्रकार गणेलो छे. जेवी रीते हस्तिना पगलामां बीजां प्राणीओनां पगलां अंतर्भूत थाय छे, ते प्रमाणे अहिंसाना प्रकारमा बीजा नव प्रकार अंतर्भूत थाय छे. अहिंसानी व्याख्या आपवानी जरुर नथी तोपण एटलु कहेवु जरुरनुं छे, के कोई पण प्राणीनो कोई पण प्रकारथी कोई पण काळमां द्रोह न करवो, एटले मन, वचन अने शरीरवडे कोई पण प्राणीने कोईपण प्रकारथी पीडा न करवी, ते अहिंसा कहेवाय छे.
हिंसा त्रण प्रकारथी थाय छ एटले १ कृता (पोते करेली), २ कारीता (बीजा पासे करावेली), अने ३ अनुमोदिता (अनुमोदन कीधेली ), ए रीते त्रण प्रकारे हिंसा थाय छे. वणी एना बीजा पण प्रकार छ, एटले लोमथी-मांस चर्मादिनी लालचथी, क्रोधथी अने मोहथीएटले पशआदिना वधथी धर्म थशे, एवी समजथी पण हिंसा करवामां आवे छे. अहिंसानुं पालन करवाथी सर्व प्राणीओ साथे मैत्रीभाव थाय छे, अने तेथी अहिंसा ए अन्य यमनियमनुं मूळ गणाय छे. वणी आ सृष्टिमां अहिंसा जेवो बीजो धर्म नथी. कहुं छे के:
शान्ति तुल्यं तपो नास्ति न संतोषात्परमं सुखम् । नास्ति तृष्णा परो न्याधिन च धर्मों दयापरः ॥ क्षमातुल्यं तपो नास्ति संतोषान परं सुखम् । न दयासदृशं ज्ञानं नास्ति माणसमं भयम् ॥ सत्येनोत्पद्यते धर्मः दया दानेन वर्धतेः । क्षमया स्थाप्यते धर्मः क्रोयो लोभाविनश्यति ॥
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