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________________ (१७) दश मुहूर्त पर्यंत धर्माराधन करना यह दसवां देशावकाशिक व्रत, चाया, आठ प्रहर तक आत्म स्वरूप को पुष्टि कर इस तरहसे धर्मका दृढ आराधन करना यह ग्यारहवां पोषधोपवास ब्रत, और पंचमहाबतधारी साधु साध्वीको आहारादिक देना यह बारहवा अतिथि संबिभागबन, इस तरहपर श्रावकोंके बारह ब्रत गिने जाते हैं. इस शिवाय दान, शील, तप और भाव ये चार प्रकारके धर्म भी बीतराग भगवानने कहे हैं. दानके अभयदान, सुपात्रदान, अनुकंपादान, उचितदान, और कीर्तिदान ये पांच प्रकार हैं, नव प्रकारकी गुप्तिसहित ब्रह्मचर्य पालन करना यह शील धर्म, छ प्रकारसे बाह्य और छ प्रकारसे अभ्यंतर इस तरहपर बारह प्रकारसे तपश्चर्या करना यह तप धर्म, और आत्मस्वरूपमें रमण करना यह भाव धर्म, इन चारों प्रकारके धर्मोका सम्यक् प्रकारसे आराधन करनेसे मोक्षपद संपादन होता है. ऐसे शुद्धदेव, शुद्धगुरु, और शुद्ध धर्मका आराधन करना सर्व जैनीमात्रका कर्तव्य है. इसके शिवाय गृहस्थ मनुष्योंको अपना द्रव्य मुमार्गमें खर्च करनेके श्री तीर्थकर भगवानने सात क्षेत्र कहे है; जीन चैतन्य, जीन प्रतिमा, ज्ञान, साधु, साध्वी, श्रावक और श्राविका ये सात क्षेत्र हैं; चरम तीर्थंकर श्री वीर भगवानको मोक्ष पधारे २४२९ वर्ष हुए है. उनके शासनमें उत्तरोत्तर होने वाले आचार्योंने इन सात क्षेत्रोंकी व्यवस्था श्रावकोंसे कराई है. वर्तमान समयमें उनमेंसे कई क्षेत्रोंकी अव्यवस्था दिखाई देती है. किसी क्षेत्रमें खूब धन व्यय किया जाता है, किसीमें बिलकुल नहीं, और किसी क्षेत्रमें द्रव्य व्यय होता है, परंतु रीतिसे नहीं. इसकी योग्य व्यवस्था कीजाय और जरूरतवाले क्षेत्रोंको अधिक पुष्टि मिले, इसवास्ते यह कॉन्फरन्स एकत्रित की गई है. हिंदुस्थानमें जैन श्वेतांबर समुदायमें विद्वान् , बुद्धिमान् , धनवान् महाशय हरेक नगर वा प्राममें जहां २ है वहांके समाजने जिनको प्रतिनिधी चुनकर भेजे है, उनहींका मंडल कॉन्फरन्स है. ___एक आदमी अपनी शक्तिसे सातों क्षेत्रोंका संरक्षण पूरी तौरसें नहीं कर सकता, यह कार्य समुदायसेंही हो सकता है. इसवास्ते इन कॉन्फरन्ससे अनेक लाभ होना संभव है. यरोप और अमेरिका जैसे देशोमें राज्य संबंधी व्यापार संबंधी अनेक कामोके लिये मंडळ एकत्र होते है और वो अपने विचारे हुए विषयमें जय प्राप्त करते हैं. हमारे देशमें उन लोगोंकी तरह उचित काय करनेके लिये यत्न किजाय तो भविष्यत्में हमारे देशके महाजन मंडळभी सुख संतोष: प्राप्त कर सकते हैं ऐसे विचारोंसें संसारिक तथा धार्मिक विषयोंका सुधारनेके लिये इस आर्यावर्तमें हरेक जातके समाज एकत्र होने लगे है. इसी तरह अपने जैन श्वेतांबर बंधुओनें अपने धार्मिक और संसारिक कार्योकी व्यवस्था उत्तम प्रकारसे करनेके लिये और स्थान २ में अपने जातके महामंडल एकत्र करनेके लिये प्रबंध किया है. इसलिये ऐसे महासमाजमें अपने धार्मिक विषयोंके संबंधमें तथा अपने संसारिक विषयोंके संबंधमें चर्चा चलाकर जरूरतके विषयोंके संबंधमें द्रढ ठहराव करके दिनोंदिन अपने लोगोंकी संसारिक और धार्मिक स्थिति उत्तम प्रकारपर होवे ऐसे यत्न करना ही इस कॉन्फरन्सका मुख्य उद्देश है. तदुपरांत जुदे २ नगर और ग्रामोंके विद्वान् , बुद्धिमान् तथाः धनवान् और सद्गुणी मनुष्योंका परस्पर मेल होनेसे आपसमें भ्रातृभाव और संपकी वृद्धि होना संभव है. एक मनुष्य कलकत्तेमें रहता हो और वैसीही स्थितिका दूसरा मनुष्य बंबईमें हो ते Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com
SR No.034560
Book TitleMumbaima Bharayeli Biji Jain Shwetambar Conferenceno Report
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJain Shwetambar Conference Office
PublisherJain Shwetambar Conference Office
Publication Year1904
Total Pages402
LanguageGujarati
ClassificationBook_Gujarati
File Size41 MB
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