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________________ ( ४२ ) उस स्थान पर आये और इसी प्रकार गण भी तैय्यार हो गया, एक ही समय शिवजी और अर्जुनने बाण छोडा, शिवजीका बाण उस सूअरकी पुच्छमें और अर्जुनजीका बाण उसके मुखमें लगा, शिवजीका बाण पुच्छमें होकर मुखसे निकल गया और पृथ्वी में प्रवेश कर गया, तथा अर्जुनजीका बाण उसके पुच्छ पर्यंत जाकर उसके नजदीक ही गिर गया और सूअर तो उसी समय मृतक होकर भूमी पर गिर गया, फिर शिवजी भिलके ही रूपमें ऐसे हो रूपवाले अपने गण सहित अर्जुनजी के साथ लडे. इस जिकरको देखनेसे बुद्धिमानोंके दिलमें अवश्य विचार आयगा कि शिवजी यदि परमात्मा सर्वज्ञ और सर्वशक्तिमान् है तो फिर उनको भिल्ल रुप बनानेकी तथा अपने गणोंका भिल्लरुप बनवाकर जल्दी से वहां आनेकी क्या जरूरत थी ?, और ऐसे ही उसके पुच्छमें बाण मारने रूप यह महा अधर्मका कार्य करनेकी उसे क्या जरूरत थी ?, क्यों कि अपने स्थानमें बैठे हुए ही अपनी शक्ति से उस राक्षसकी बुद्धिको ऐसी निर्मल कर देते कि वो मूक नामा राक्षस अर्जुनजीका भक्त बन जाता, जिससे शिवजीको ऐसा निर्दय काम नहीं करना पडता, तथा अपनी ज्ञानशक्ति से अर्जुनकी परीक्षा कर लेते, भिल्लका रूप खुद धारनेसे तथा गणोंका धरानेसे तथा अर्जुनकी साथ लडाई करनेसे विशेष फल क्या निकाला ?, हमको तो यही मालूम होता है कि इन पूर्वोक्त काम करनेसे शिवजी न तो परमात्मा महात्मा और सर्वज्ञ थे, और न सर्वशक्तिमान् थे, व्यास ऋषिजाने अर्जुनजीको कहा कि जो कोइ दुःख देनेवाला हो उसको शोच-विचार किये Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com
SR No.034555
Book TitleMat Mimansa Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVijaykamalsuri, Labdhivijay
PublisherMahavir Jain Sabha
Publication Year1921
Total Pages234
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
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