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ज़हरको अमृत और अमृतको जहर पने मालूम कराता है
और पान करनेवालोंको सदैव जन्म मरणके चक्रमें अनंतकाल व्यतीत करना पडता है. आपने साफ साफ उनके शास्त्रके नाम अध्याय श्लोक आदि ठिकाने लिख लिख कर बतलाया है कि देखो-तुम्हारे देवकी लीला. उसमें भी यह बडी खूबी रक्खी है कि, उनके ग्रंथके भाषांतर भी उनके मतके विद्वान् पंडितोंने जिस प्रकार किये हैं उसी प्रकार अक्षरशः लिख दिये हैं. इससे उन लोगोंको यह भी बात कहनेका समय नहीं मिल सकता कि, कौन जाने भाषांतरमें गरबड हुई होगी?. वास्तवमें इस प्रकारसे लिखे हुए लेख ही प्रमाणभूत हो सकते हैं अन्यथा द्वेषानलसे दग्ध हुए अप्रामाणिक मनुष्य जैसे विना प्रमाण ज्यूं मनमें आवे त्यूं लिख मारते हैं, उनके लेखमें
और प्रामाणिक मध्यस्थ महात्माओंके लेखमें फर्क ही क्या रहे?. देखिये !-द्वेषानलसे दग्ध हुए मनुष्योंके लेखमें कितनी अप्रमाणिकता और कहीं के उल्लेख दिये वगैरे मनस्वी विचारोकी दुर्गधता होती है सो'घनश्याम' नामक पुरुषके बनाये हुए 'पाटणनी प्रभुता' नामके नौवेलके देखनेसे सम्यग्तया ज्ञात हो जाती है. उक्त कितावके १४५ वे पृष्ठ पर जैनधर्मके जतिकी हलकाई दिखलाने के लिये वगैर सबूतीके लिखा है कि-" पाटाम५ ना सरसी सरस्वती (નદી) વહેતી હતી ત્યાં તે ગયે, અને નજર ફેરવી ઘણું ધ્યાનથી જોતાં કોટમાં એક મોટું બકેરું દેખાયું. એક પળ પણ વધારે ગાળ્યા વિના, એક જમૈયા શિવાય પોતાનાં હથિયાર દૂર ફેકી, તેણે સરસ્વતીમાં ઝંપલાવ્યું, અને તરતે તરત તે બાકારા તરફ ગયે. બાકોરામાંથી ગલીચ પાણી નદીમાં પડતું
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