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साथ शिवजीका बडा भारी युद्ध हुआ मगर शिवजीकी कुछ पेश नहीं चली तब शिवजी विष्णुके शरण गए. देखो नीचे के श्लोक
" तासु तृप्तासु सम्भूता, भूय एवान्धकपनाः । ___ अदितस्तैर्महादेवः, शूलमुद्गरपाणिभिः ॥ ३४ ॥
ततः स शंकरो देव-स्त्वंधकैर्व्याकुलीकृतः।। जगाम शरणं देवं, वासुदेवमजं विभुम् ॥ ३५ ॥ ततस्तु भगवान् विष्णुः, सृष्टवान् शुष्करेवतीम् । या पपौ सकलं तेषा-मन्धकानामसृक् क्षणात् ॥ ३६॥ यथा यथा च रुधिरं, पिबन्त्यन्धकसम्भवम् । तथा तथाधिकं देवी, संशुष्यति जनाधिप! ॥ ३७ ॥ पीयमाने तथा तेषा-मकानां तथाऽसृजि । अन्धकास्तु क्षयं नीताः, सर्वे ते त्रिपुरारिणा ॥३८॥ मूलान्धकं तु विक्रम्य, तदा शर्वत्रिलोकधुक् । चकार वेगाच्छूलाग्रे, स च तुष्टाव शंकरम् ॥ ३९॥"
इस उपरके लेखसे साफ सिद्ध हो गया कि, विष्णुप्ते महादेवजी ज्ञानमें हीन है, इसी वास्ते शिवजीने विष्णुका शरण लिया तो फिर शिवजीको परमात्मा तथा सर्वशक्तिमान् कैसे कह सकते हैं .
मत्स्यपुराण १५१ के अध्यायके अंतमें बयान है कि
'शुभ' तथा ' निमि' नामक दैत्योंसे विष्णुका युद्ध हुआ उसमें विष्णु दैत्योंसे मार खा कर युद्धमेंसे भाग निकले. तथा हि
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