________________
१३. )
ऐसी विपरीत बातोंको देखते नहीं करते थे, इतना ही नहीं बल्के था ऐसे परमपवित्र आतशास्त्रों को भी कुशास्त्र लिखते थे
पर उनसे पटनेका प्रयत्न सत्यधर्मका जिनमें कथन
देखो - कूर्मपुराण पूर्वार्द्ध देव्या माहात्म्य नामक अध्याय १२ के पत्र २२ वे में नीचे लिखे हुए श्लोक हैं
46.
न च वेदाहते किंचि-च्छास्रं धर्माभिधायकम् । योऽन्यत्र रमते सोऽसौ न सम्भाष्यो द्विजातिभिः ॥ २६० ॥ यानि शास्त्राणि दृश्यंते, लोकेऽस्मिन् विविधानि तु । श्रुतिस्मृतिविरुद्धानि, निष्ठा तेषां हि तामसी ॥ २६१ ॥ कापालं भैरवं चैव, यामलं वाममार्हतम् ।
एवं विधानि चान्यानि, मोहनार्थानि तानि तु ॥ २६२ ॥ ये कुशास्त्राभियोगेन, मोहयन्तीह मानवान् । मया सृष्टानि शास्त्राणि, मोहायैषां भवान्तरे ॥ २६३ ॥
17
भावार्थ
वेदके सिवाय धर्म कथक कोई शाख नहीं है जो वेद सिवायके धर्मको मानता है उसके साथ संभाषण करना ब्राह्मणको मुनासिव नहीं है || २३० ॥ श्रुति स्मृति विरुद्ध जो शास्त्र लोगों में दिखते हैं सो तामसी हैं ॥ २६१ ॥ कापालिक भैरव यामल वाम तथा आर्हत-जैन दर्शन ये सब लोगोंको व्यामोह पैदा करानेवाले हैं || २६२|| जो लोग कुश -- त्रके योगसे मनुष्यों को मोहित करते हैं उनको भवांतर में हित करनेके लिये मैंने ही उन कुशास्त्रोंको बना साथ
लकि हमने यहां नहीं
अब विचारना चाहिये कि त्रि मारनेका, शराब पीनेका, जुआ
Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat
www.umaragyanbhandar.com