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________________ महाराजा अजितसिंहजी को सौंप दिया । इन दिनों मुगल सैनिक मारवाड़ में मनमाने अत्याचार करने लगे थे। यह देख सातलवास के ( माधोदासोत ) मेड़तिए राजसिंह ने अपने भाई बन्धुओं को एकत्रित कर मेड़ते पर चढ़ाई कर दी । इस पर वहाँ का हाकिम शेख सादुल्लाखा उससे लड़ने के लिये नगर के बाहर निकल आया । राजसिंह के निकट पहुँचने पर दोनों तरफ़ से घमासान युद्ध होने लगा । परन्तु शाम होने पर सादुल्लाखा नगर का भार ( केशवदासोत ) मेड़तिये पृथ्वीसिंह को सौंपकर स्वयं किले में चला गया । दूसरे दिन कुछ ही देर के युद्ध के बाद किला राजसिंह के हाथ आ गया, और सादुल्लाखाँ पकड़ा गया । इस पर मेड़ते के मन्दिरों में फिर से मूर्तिपूजन होने लगा । __सावन वदि ११ (२३ जुलाई ) को बचे हुए राठोड़-सरदार भी दिल्ली से जोधपुर पहुँच गए । इनकी ज़बानी दिल्ली के युद्ध का हाल सुनकर चाँपावत वीर सोनग और भाटी राम आदि ने ( अजमेर के फौजदार ) तहव्वरखाँ को जोधपुर से निकाल कर नगर पर अधिकार कर लिया। इसी प्रकार धवेचा सुजानसिंह ने सिवाने के किले को भी हस्तगत कर लिया। इन घटनाओं की सूचना पाते ही बादशाह तहव्वरखा से नाराज हो गया और उसने उसका खाँ का खिताब छीनकर उससे अजमेर की फौजदारी भी ले ली । इसी प्रकार इंद्रसिंह को भी अयोग्य समझ उसके पास दिल्ली लौट आने की आज्ञा भेज दी । इसके बाद भादों वदि ६ ( १७ अगस्त ) को बादशाह ने फिर से राठोड़ों को परास्त कर जोधपुर पर अधिकार करने के लिये सरबलंदखाँ की अधीनता में एक बड़ी सेना अपने साथियों से कह दिया कि यदि किसी तरह यह भेद खुल जाय, तो वे शाही सैनिकों से युद्ध छेड़ कर कुछ समय तक उन्हें वहीं रोक रक्खें । इसके बाद वे ही नकली बालक बादशाही महल में पहुँचाए गए, और बहुत समय तक लोग उन्हें ही असली महाराजकुमार समझते रहे । (देखो पृ० ३४३)। 'मुंतखिलबुल्लुबाब' से भी इसी बात की पुष्टि होती है । उसमें यह भी लिखा है कि जब तक रानाजी ने अपने कुटुम्ब की कन्या से अजितसिंहजी का संबंध नहीं कर दिया, तब तक बादशाह का उनके विषय का संदेह दूर नहीं हुआ। (देखो भाग २ पृ० २६०)। १. मासिरेआलमगीरी, पृ० १७८ । २. अजितोदय, सर्ग ८, श्लो० १-३४ । . ३. अजितोदय, सर्ग ८, श्लो० ३०-३२ । Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com
SR No.034553
Book TitleMarwad Ka Itihas Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVishweshwarnath Reu
PublisherArcheaological Department Jodhpur
Publication Year1938
Total Pages516
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size369 MB
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