SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 346
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ मारवाड़ का इतिहास प्रवाहित कर लड़ते-भिड़ते मारवाड़ का मार्ग लिया । तुगलकाबाद तक तो शाही सेना भी इनके पीछे लगी रही, परन्तु अंत को रात्रि के कारण उसे आगे बढ़ने का साहस न हुआ। राठोड़ों के चले जाने के बाद जब फौलादखाँ को बालक महाराज का कुछ भी पता न चला, तब उसने उनके बदले एक दूध बेचनेवाले के बालक को लेजाकर बादशाह के सामने उपस्थित कर दिया । बादशाह ने भी उसे वास्तविक राजकुमार समझ उसका नाम मोहम्मदीराज रक्खा, और उसे अपनी कन्या जेबुन्निसा बेगम १. मासिरेआलमगीरी, पृ० १७८ । उक्त इतिहास में यह भी लिखा है कि इस युद्ध में राठोड़ों के जोधा रणछोड़दास आदि ३० सरदार मारे गए, और बादशाह के बहुत से सैनिक क़त्ल हुए। अजितोदय, सर्ग ७ श्लो० १६-८८ । परन्तु यदुनाथ सरकार ने लिखा है कि जिस समय भाटी रघुनाथ यवन-सैनिकों का ध्यान अपनी तरफ खींचे हुए था, उसी समय राठोड़ दुर्गादास रानियों को मरदाने भेस में लेकर मय राजकुमार के मारवाड़ की तरफ चल पड़ा । परन्तु जब डेढ़ घंटे के युद्ध में अन्य ७० राजपूत-वीरों के साथ ही रघुनाथ भी मारा गया, तब यवनों ने दुर्गादास का पीछा किया, और उसके करीब ६ मील पहुँचते-पहुँचते उसे जा घेरा । इस पर रणछोड़दास जोधा ने थोड़े-से वीरों को लेकर उनका मार्ग रोक लिया । परन्तु इन मुट्ठी-भर वीरों के मारे जाने पर फिर मुग़ल सैनिकों ने इनका पीछा किया । तब दुर्गादास ने महाराज के परिवार को तो ४० योद्धाओं के साथ मारवाड़ की तरफ रवाना कर दिया, और स्वयं ५०० वीरों के साथ पलटकर मुगलों का सामना किया। इस बार घंटे-भर के युद्ध के बाद ही सूर्यास्त का समय हो जाने और दिन-भर के युद्ध में थक जाने के कारण यवन-सेना शिथिल पड़ गई । अतः जिस समय अपने बचे हुए ७ आहत योद्धाओं के साथ दुर्गादास यवन-वाहिनी में से मार्ग काटकर निकल गया, उस समय मुग़ल-सेना भी दिल्ली को लौट गई । इसके बाद दुर्गादास भी महाराज के परिवार के साथ श्रावण बदी ११ (२३ जुलाई) को मारवाड़ में पहुँच गया । (हिस्ट्री ऑफ़ औरंगज़ेब, भा० ३, पृ० ३७७-३७८) । २. मासिरेआलमगीरी में लिखा है कि बादशाह ने उस बालक को राठोड़ों के डेरे से पकड़ कर लाई गई दासियों को दिखलाकर अपनी तसल्ली करली थी। परन्तु इतिहास से प्रतीत होता है कि स्वामि-भक्त दासियों ने उसे साफ़ धोका दिया था। उसमें यह भी लिखा है कि फौलादखाँ ने दूसरे दिन लड़के का कुछ ज़ेवर भी लाकर बादशाह के सामने पेश किया था। राठोड़-सरदारों का कुछ माल भी बादशाह के हाथ आया । (देखो पृ०१७८)। 'मासिरुलउमरा' में भी अजितसिंहजी को जसवंतसिंहजी का असली पुत्र लिखा है । (देखो भाग ३ पृ० ७५५) 'सैहरुल मुताख़रीन' में लिखा है कि राठोड़ों ने वहाँ पर असली महाराजकुमारों के बदले नकली बालकों को रख कर दिल्ली से कूच कर दिया, और पीछे ठहरनेवाले २५८ Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com
SR No.034553
Book TitleMarwad Ka Itihas Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVishweshwarnath Reu
PublisherArcheaological Department Jodhpur
Publication Year1938
Total Pages516
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size369 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy