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मारवाड़ का इतिहास ८ मई ) को महाराजकुमार पृथ्वीसिंहजी का शीतला की बीमारी से दिल्ली में स्वर्गवास हो गया । अतः जब महाराज को इसकी सूचना मिली, तब यह बहुत ही व्याकुल हुए। यह देख शाहजादे ने, जो महाराज को अपना शुभचिंतक और पिता के तुल्य मानता था, इनके दुःख में समवेदना प्रकट कर इन्हें सांत्वना दी। इसके बाद जब यह
औरगाबादै पहुँचे, तब आंबेर-नरेश जयसिंहजी ने वहाँ का सारा प्रबन्ध शाहज़ादे मुअज़्ज़म को सौंप दिया । कुछ ही दिनों में महाराज के उद्योग से इधर तो शाही सेनाएँ
कहीं-कहीं वि० सं० १७२३ की चैत्र वदि ८ भी लिखी मिलती है। यह भी ठीक नहीं है । यदि ऐसा हुआ होता, तो महाराज को दक्षिण जाने से पूर्व ही इसकी सूचना मिल गई होती, क्योंकि यह वि० सं० १७२४ की चैत्र सुदि ८ को औरंगाबाद (दक्षिण) की तरफ रवाना हुए थे ।
हि० सन् १०७६ (ई० सन् १६६८=वि० सं० १७२५) के एक फ़रमान में बादशाह ने महाराज को नरबदा के किनारे के गुजरी गांव की तरफ जाने और गुजरात का प्रबन्ध मुहम्मद अमीनखाँ को देने का लिखा है। १. पृथ्वीसिंहजी का जन्म वि० सं० १७०६ की आषाढ़ सुदि ५ (ई० सन् १६५२ की
१ जुलाई ) को हुआ था। इनके विवाह को अभी दो वर्ष ही हुए थे। परन्तु फिर भी
इनके पीछे इनकी रानी, जो गौड़-राजपूतों की कन्या थी, सती हुई । २. टॉड साहब ने पृथ्वीसिंहजी की मृत्यु का, वि० सं० १७२६ (ई० सन् १६७०) के
अनन्तर, महाराज जसवंतसिंहजी के काबुल चले जाने पर औरंगजेब द्वारा दिए गए ज़हरी खिलअत के पहनने से होना लिखा है।
(टॉड का राजस्थान (क्रुक संपादित ) भा० २, पृ० ६८४-६८६ ।) परन्तु मारवाड़ की ख्यातों और आलमगीरनामे में इस घटना का वि० सं० १७२४ में होना लिखा है (देखो पृ० १०३८)।
३. ख्यातों में इनका आषाढ़ वदि १३ को औरंगाबाद पहुँचना लिखा है । ४. वी० ए० स्मिथ ने लिखा है कि औरंगज़ेब के कहने से अांबेर-नरेश जयसिंहजी को
उनके पुत्र कीरतसिंह ने विष दे दिया था। इससे वि० सं० १७२४ (ई० सन् १६६७) में दक्षिण में ही उनकी मृत्यु हो गई । बादशाह ने उनके स्थान पर महाराज जसवंतसिंहजी को मुअज्ज़म के साथ भेज दिया । यह पहले भी दक्षिण में रह चुके थे । परन्तु इन्हें इस बार भी पूरी सफलता नहीं मिली । इसका कारण यह था कि इन्होंने और शाहज़ादे ने मिलकर शिवाजी से बहुतसा रुपया ले लिया और उनके विरुद्ध किए जानेवाले कार्यों में शिथिलता कर दी । यह उनसे यहाँ तक मिल गए कि ई० सन् १६६७ (वि० सं० १७२४ ) में इन्होंने स्वयं बादशाह को भी शिवाजी को राजा का खिताब देने के लिये दबाया।
(ऑक्सफ़ोर्ड हिस्ट्री ऑफ इंडिया, पृ० ४२७-४२८।) ५. इस घटना का समय आषाढ़ वदि १४ लिखा है ।
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