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________________ मारवाड़ का इतिहास इसी बीच गुजरात से दाराशिकोह का भेजा हुआ एक पत्र महाराज को मिली । उसमें उसने अपनी सहायता के लिये इनसे प्रार्थना की थी । महाराज ने भी इस बात को अंगीकार कर लिया । इसकी सूचना पाते ही औरंगज़ेब घबराया और उसने इधर तो मोहम्मद अमीनख़ाँ को वापस बुलवा लिया और उधर आंबेर- नरेश जयसिंहजी के द्वारा महाराज के पास फ़रमान भिजवाकर इन्हें शांत करने की चेष्टा करने लगा । जब जयसिंहजी के बीच में पड़ने से महाराज को बादशाह की तरफ़ का विश्वास हो गया, तब यह भी बीलाड़े से जोधपुर वापस चले आए और इन्होंने दाराशिकोह को लिख दिया कि जब तक आप किसी अन्य बड़े नरेश को भी अपना सहायक न बना लें, तब तक अकेले मेरा आपकी सहायता में खड़ा होना निरर्थक ही है । इस समय तक दाराशिकोह भी २२ हज़ार सेना के साथ मेड़ते के पास पहुँच चुका था । इसलिये उसने महाराज के इस पत्र को पाकर भी इन्हें अपनी तरफ़ करने का बहुत कुछ उद्योग किया । परन्तु महाराज ने दबे हुए झगड़े को फिर से खड़ा करना उचित न समझा । अंत में दाराशिकोह निराश होकर अजमेर की तरफ़ चला गयाँ । इसके बाद जब औरंगज़ेब अजमेर के निकट पहुँचा, तब फिर दोनों भाइयों की सेनाओं के बीच युद्ध हुआ । परन्तु इस बार भी दारा को हारकर भागना पड़ा । यह घटना वि० सं० १७१६ की चैत्र सुदि २ ( ई० सन् १६५६ की १४ मार्च) को हुई थीं । इस युद्ध में विजय प्राप्त कर आलमगीर ने महाराज के लिये गुजरात की सूबेदारी का फ़रमाने और खासा खिलअत भेजकर उनका पहले का ७,००० जात और ७,००० सवारों का मनसब ( जिसमें ५,००० सवार दुस्पा से स्पा थे ) अंगीकार कर लिया । साथ ही इन्हें गुजरात जाकर वहाँ का प्रबंध करने और महाराजकुमार १. आलमगीरनामे में महाराज जसवंत का अपनी तरफ़ से दारा को पत्र लिखकर सहायता देने का वादा करना और बुलवाना लिखा है (देखो पृ० ३०० ) । २. ख्यातों में इस फरमान का वि० सं० १७१५ की चैत्र वदि ११ को महाराज के पास पहुँचना लिखा है । ३. श्रालमगीरनामा, पृ० ३०६ ३११ । ४. आलमगीरनामा, पृ० ३१६-३२० । ५. ख्यातों में इस फ़रमान का वि० सं० १७१६ की चैत्र सुदि ६ को जोधपुर पहुँचना 8 लिखा है । Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat २३० www.umaragyanbhandar.com
SR No.034553
Book TitleMarwad Ka Itihas Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVishweshwarnath Reu
PublisherArcheaological Department Jodhpur
Publication Year1938
Total Pages516
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size369 MB
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