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मारवाड़ का इतिहास
२५. महाराजा जसवंतसिंहजी (प्रथम)
यह राजा गजसिंहजी के द्वितीय पुत्र थे । इनका जन्म वि० सं० १६८३ की माघ वदि ४ (ता० २६ दिसम्बर, १६२६) को बुरहानपुर (दक्षिण ) में हुआ था। राजा गजसिंहजी का विचार इन्हीं को अपना उत्तराधिकारी बनाने का था। इससे वि० सं० १६९५ की जेठ सुदि ३ (ई० स० १६३८ की ६ मई) को, जिस समय आगरे में उनकी मृत्यु हुई, उस समय बादशाह शाहजहाँ ने इन (जसवंतसिंहजी) को खिलअत, जड़ाऊ जमधर (कटार), ४ हजारी जात और ४ हजार सवारों का मनसब, राजा का खिताब, निशान, नकारा, सुनहरी जीन का घोड़ा और हाथी देकर राजा की पदवी से भूषित कर दिया ।
इसके बाद वि० सं० १६१५ की आषाढ वदि ७ (ई० स० १६३८ की २५ मई) को आगरे में ही इनका राजतिलक हुआ । प्रथम श्रावण सुदि १२ ( १२ जुलाई) को बादशाह ने इन्हें फिर खिलअत देकर सम्मानित किया । उस समय महाराज की अवस्था करीब ११ वर्ष की थी । इसी से बादशाह ने मारवाड़ के राजकार्य की देख-भाल के लिये पावत राजसिंह को इनका प्रधान नियत कर
१. इस पर महाराज ने भी १,००० मुहरे, १२ हाथी और कुछ जड़ाऊ शस्त्र बादशाह को मेट किए।
बादशाहनामा, जिल्द २, पृ० १७॥ ख्यातों में लिखा है कि उस समय जसवंतसिंहजी विवाहार्य बूंदो गए हुए थे । परन्तु पिता की मृत्यु का समाचार पाते ही यह आगरे जा पहुँचे । बादशाह की आज्ञा से पहले सुलतान मुराद ने इनके मकान पर आकर मातमपुरसी की और इसके बाद बादशाह शाहजहाँ ने स्वयं अपने हाथ से इनका राजतिलक किया। २. इसके करीब २४ दिन बाद महाराज ने भी बादशाह को ६ हाथी भेट में दिए ।
___ बादशाहनामा, जिल्द २, पृ० १०२-१.३ । ३. इसका जन्म वि० सं० १६४३ की वैशाख सुदि २ को हुआ था।
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