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________________ मारवाड़ का इतिहास बाद वि० सं० १६६४ की पौष बदी ४ ( ई० स० १६३७ की २५ नवम्बर ) को यह अपने द्वितीय महाराज-कुमार जसवंतसिंहजी को साथ लेकर बादशाह के पास आगरे पहुँचे । वहाँ पर माघ के महीने ( ई० सन् १६३८ की जनवरी ) में बादशाह ने इन्हें फिर एक खिलअत देकर इनका सत्कार किया। वि० सं० १६९५ की जेठ सुदि ३ ( ई० सन् १६३८ की ६ मई ) को आगरे में ही राजा गजसिंह जी का देहान्त हो गया । इसीसे वहां पर यमुना के किनारे इनका अंत्येष्टि संस्कार कर उक्त स्थान पर एक छतरी बनाई गई। राजा गजसिंहजी बड़े वीर और दानी थे । ख्यातों के अनुसार इन्होंने छोटे बड़े ५२ युद्धों में भाग लिया था, और इनमें के प्रत्येक युद्ध में यह सेना के अग्रभाग के सेनापति रहे थे । इनकी वीरता के कार्यों का उल्लेख पहले किया जा चुका है । बादशाही दरबार में इनका बड़ा मान था और स्वयं बादशाह ने इन्हें 'दलथंभन' की उपाधि से भूषित कर इनके घोड़ों को शाही दाग से मुक्त कर दिया था। महाराज के साथ हर समय सजे सजार पाँच हजार सवार रहा करते थे और यह अपनी इस सेना की देखभाल स्वयं ही किया करते थे। ख्यातों से ज्ञात होता है कि इन्होंने | १४ कवियों को जुदा-जुदा 'लाख पसार्व' दिए थे। वास्तव में देखा जाय तो इनके १. 'बादशाहनामा', भा॰ २, पृ० ८। २. बादशाहनामा, भा॰ २, पृ० ११ । ३. बादशाहनामा, भा॰ २, पृ० ६७ । मारवाड़ की ख्यातों में लिखा है कि जिस समय महाराज आगरे में बीमार हुए, उस समय स्वयं बादशाह शाहजहाँ इन से मिलने के लिये आया । इसी अवसर पर महाराज ने, बातचीत के सिलसिले में, उससे अपने द्वितीय पुत्र जसवंतसिंहजी को जोधपुर का राज्य और बड़े पुत्र अमरसिंहजी को अलग मनसब देने की प्रतिज्ञा करवा ली । इसी प्रकार इन्होंने अपने सामंतों से भी अपने पीछे जसवंतसिंहजी को गद्दी पर बिठाने का वचन ले लिया था। वि० सं० १६८६ के दो लेख फलोदी से मिले हैं। इन में महाराज गजसिंहजी का और उनके बड़े पुत्र महाराज कुमार अमरसिंहजी का उल्लेख है । ( 'जर्नल बंगाल एशियाटिक सोसाइटी' (१९१६) पृ०६७-६८ । डाक्टर जेम्स बर्जेज़ ने अपनी बनाई 'कॅनॉलॉजी ऑफ मॉडर्न इंडिया' (पृ० ६१) में राजा गजसिंहजी का वि० सं० १६६४ में गुजरात में मारा जाना लिखा है। यह ठीक नहीं है। ४. राजपूताने में चारणों, आदि को 'लाख पसाब' देने का यह नियम था कि जिसको यह पुरस्कार देना होता था उसको कुछ वस्त्र, आभूषण, हाथी अथवा घोड़ा और कम से कम एक हजार रुपये सालाना की जागीर दी जाती थी। २०८ Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com
SR No.034553
Book TitleMarwad Ka Itihas Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVishweshwarnath Reu
PublisherArcheaological Department Jodhpur
Publication Year1938
Total Pages516
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size369 MB
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