SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 187
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ मारवाड़ का इतिहास वहां का राना डूंगरसी' भी बड़ा वीर था । अतः इस सेना को विशेष सफलता नहीं मिली । यह देख रावजी ने स्वयं ही उस ( सिवाना ) पर चढ़ाई की और वहां के किले को घेरकर उसका सारा बाहरी संबंध काट दिया । इससे जब किले का भीतरी सामान समाप्त हो गया, तत्र ढुँगरसी को किला छोड़कर निकल जाना पड़ा और उस पर मालदेवजी का अघिकार हो गया । इसी विजय का सूचक एक लेखे उक्त किले में विद्यमान है । वि० सं० १५६५ ( ई० सन् १५३८ ) में जालोर के शासक बिहारी पठान सिकंदरख़ाँ ने, जिसे बल्लोचों ने हराकर भगा दिया था, राव मालदेवजी से सहायता की प्रार्थना की । इस पर इन्होंने उसे अपने पास बुलाकर दुनाड़ा नामक गांव जागीर में दे दिया । परंतु कुछ समय बाद ही सिकंदरखाँ को मालदेवजी की तरफ़ से संदेह हो गया, अतः उसने यहां से भागकर इधर-उधर उपद्रव मचाने का प्रबंध किया । इसकी सूचना पाते ही राव मालदेवजी ने अपनी सेना उसके पीछे भेज दी । सिकंदरख़ाँ के सहायक लोदी पठान तो गुजरात की तरफ भाग गए, परंतु सिकंदरख़ाँ पकड़ा जाकर कैद कर लिया गया और इसी क़ैद में उसकी मृत्यु हुई । वि० सं० १५१६ ( ई० सन् १५३९ ) में जिस समय मालदेवजी बीकानेर पर चढ़ाई करने का प्रबंध कर रहे थे, उसी समय बंगाल में बादशाह हुमायूँ और शेरखाँ १. यह जैतमाल राठोड़ था । २. स्वति श्रे (श्री) गणेश प्रा ( प्र ) सादातु (त्) समतु ( संवत् ) १५६४ वर्षे आसा (घा) ढवदि ८ दिने बुधवा ( स ) रे मह (हा ) राज ( जा ) धिराज मह (हा ) राय (ज) श्रीमालदे (व) विजै ( जय ) राजे (ज्ये) गढसि (-) (वाण) लिये ( यो ) गढरि ( री ) कु ( कूं ) चि मं ( मां ) गलिये देवे भादाउतु ( भदावत ) रे हाथि (थ) दि ( दी ) नी गढ़ थं (स्तं ) भेराज पंचा (चो) ली अचल गदाधरे ( ग ) तु रावले वहीदार लित्र (खि) तं सूत्रधार करमचंद परलिय सूत्रधार केसव | यद्यपि इस लेख में संवत् १५६४ लिखा है, तथापि इसको मारवाड़ का उस समय का प्रचलित श्रावणादि संवत् मान लेने के चैत्रादि संवत् १५६५ आता है। साथ ही लेख में यद्यपि अष्टमी तिथि ही पढ़ी जाती है, तथापि बुधवार सप्तमी को आता है । ३. तारीखे पालनपुर, जिल्द १, पृ० ६२-६३ । १२२ Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com
SR No.034553
Book TitleMarwad Ka Itihas Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVishweshwarnath Reu
PublisherArcheaological Department Jodhpur
Publication Year1938
Total Pages516
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size369 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy