SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 186
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ राव मालदेवजी का इरादा कर लिया था, तथापि किसी तरह यह बात लूणकरणजी की रानी को मालूम हो गई । अतः उसने अपने पुरोहित राघवदेवे के द्वारा इसकी सूचना राव मालदेवजी के पास भिजवा दी । इससे यह सावधान हो गए और वहांवालों को इन पर घात करने का मौका ही न मिला । पहले लिखे अनुसार जिस समय मालदेवजी ने नागोर पर चढ़ाई की थी, उस समय सिवाना और मल्लानी के सरदारों को भी सहायतार्थ बुलवाया था। परंतु उन लोगों ने इस पर कुछ भी ध्यान नहीं दिया । इसीसे वि० सं० १५१५ ( ई० सन् १५३८ ) में इन्होंने सिवाना गांव पर अधिकार करने के लिये एक सेना भेज दी । यह सुन रानी ने कोसाने में ही डेरा डालने की आज्ञा दे दी और आगे जाने से साफ इनकार कर दिया । यद्यपि ईश्वरदास ने आकर फिर भी अनेक तरह से समझाया और शेरशाह की सेना का भय भी दिखलाया, परंतु मानवती और वीरपत्नी उमादे ने एक बात की भी परवा न की । इसके बाद उसने रावजी को कहलवा दिया कि मुझे यहीं रहने की प्राज्ञा दी जाय । साथ ही यदि कुछ मेना भी दे दी जाय, तो मैं यहीं से जोधपुर के किले की रक्षा का प्रबंध कर सकती हूँ । इस पर राव मालदेवजी ने जोधपुर के हाकिम को कुछ फ़ौज देकर वहां का प्रबंध करने के लिये भेज दिया । अंत में जब शेरशाह विजयी हुआ, तब युद्ध से लौटे हुए बहुत-से राठोड़ कोसाने में आकर जमा हो गए । कुछ दिन बाद जब खवासखाँ ने जोधपुर पर भी अधिकार कर लिया, तब वह कोसाने की तरफ चला । परंतु रानी उमादे के सरदारों के जमघट को देख उसकी युद्ध करने की हिम्मत न हुई । अंत में वि० सं० १६०० (ई० स० १५४३ ) में वह अपनी सेना के पड़ाव के स्थान पर खवासपुरानामक गांव बसाकर वापस लौट गया । यह गांव कोसाने से दो-तीन कोस के फासले पर अब तक आबाद है । इस गांव को बसाने के पूर्व उसने रानी उमादे से भी इस विषय में सम्मति ले ली थी। वि० सं० १६०४ ( ई० स० १५४७ ) में यह रानी अपने बड़े पुत्र राम ( यह मालदेवजी की कछवाहा-वंश की रानी के गर्भ से जन्मा था । परंतु उमादे इसे अपना दत्तक पुत्र समझती थी) के साथ गूंदोज चली गई और वहां से उसी के साथ केलवा जाकर वहीं रहने लगी । परंतु वि० सं० १६१६ (ई० स० १५६२) में जब इसे मालदेवजी के स्वर्गवास की सूचना मिली, तब इसने वहीं पर सती होकर पति का अनुगमन किया। १. किसी-किसी ख्यात में इस बात का पहले पहल उमादे को मालूम होना और उसका राघव देव के द्वारा राव मालदेवजी के पास सूचना भिजवाना लिखा है। किसी-किसी ख्यात में इस रानी का कोसाने से रामसर जाकर कुछ दिन वहां रहना भी लिखा मिलता है । जैसलमेर की तवारीख में उमादे का जैसलमेर से ही राम के साथ मेवाड़ जाना लिखा है । २. राव मालदेवजी जब विवाह कर सकुशल मारवाड़ को लौटे, तब अपने साथ इस राघवदेव को भी ले आए थे । इसका पुत्र चंडू ज्योतिषशास्त्र का अच्छा ज्ञाता था। उसका चलाया हुआ चांद्रपक्षीय चंडू-पंचांग अब तक मारवाड़ से प्रकाशित होता है और लोगों में आदर की दृष्टि से देखा जाता है । १२१ Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com
SR No.034553
Book TitleMarwad Ka Itihas Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVishweshwarnath Reu
PublisherArcheaological Department Jodhpur
Publication Year1938
Total Pages516
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size369 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy