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________________ राव रणमलजी इसके बाद जैसे ही रणमल्लजी को महपाके मांडूके सुलतान महमूद खिलजी (प्रथम) के निकट होने की सूचना मिली, वैसे ही इन्होंने दूत भेजकर उसे कहलाया कि या तो वह महाराणा के अपराधी महपा को मेवाड़ भेज दे, या युद्ध की तैयारी करे । परन्तु जब इसका सन्तोषजनक उत्तर न मिला, तब वि० सं० १५८४ ( ई० सन् १५३७ ) के करीब इन्होंने मेवाड़ और मारवाड़ की सम्मिलित सेना लेकर मांडू पर चढ़ाई की । यद्यपि इसकी सूचना मिलते ही महमूद भी इनके मुकाबले को, सारंगपुर के पास तक, आगे बढ़ आया, तथापि युद्ध में राजपूतों की मार न सह सकने के कारण उसकी सेना भाग चली । इसलिये महमूद को हार माननी पड़ी' । इस विजय के कारण मेवाड़ में राव रणमल्लजी का प्रभाव और भी बढ़ गयो । परन्तु जिन लोगों के स्वार्थ-साधन में इससे बाधा पहुँचती थी, वे लोग इनके विरुद्ध षड्यन्त्र रचने लगे । उस विश्वास का बदला भी उसे अच्छा ही मिला।" (ऐनाल्स ऐंड ऐन्टिक्विटीज़ ऑफ राजस्थान, भा० १, पृ० ३३२) उन्होंने यह भी लिखा है कि-" (मेवाड़ के) कवि लोग अपने नरेश (कुंभा) के पिता की मृत्यु का बदला लेने के कार्य को अपने राज्य की रक्षा के कार्य के समान समझ कर, सहयोग करने के लिये मारवाड़ नरेश की बहुत-कुछ प्रशंसा करते हैं" (ऐनाल्स ऐंड ऐन्टिक्विटीज़ ऑफ राजस्थान, भा० १, पृ० ३३४)। मेवाड़ के इतिहास से ज्ञात होता है कि महाराणा मोकलजी के मारे जाने पर सिरोही-नरेश महारावल सैसमलजी ने अपने राज्य की सीमा में मिला भेवाड़ का कुछ प्रदेश दबा लिया था । परन्तु रणमल्लजी ने सेना भेज कर उक्त प्रदेश के साथ ही प्राबू और उसके आसपास के प्रदेश मेवाड़राज्य में मिला लिए । १. कर्नल टॉड ने इस युद्ध में महमूद का कैद किया जाना लिखा है । (ऐनाल्स ऐंड ऐन्टिक्विटीज़ ऑफ राजस्थान, भा० १, पृ० ३३५) 'वीरविनोद' में लिखा है कि"सुलतान भागकर मांडू के किले में जा रहा, और उसने महपा को वहां से चले जाने को कहा । जिस पर वह गुजरात की तरफ़ चला गया । कुंभाने मांडू का किला घेर लिया । अन्त में सुलतान की सेना भाग निकली, और महाराणा महमूद को चित्तौड़ ले आए । फिर छै महीने तक कैद रखा, और कुछ भी दंड न लेकर उसे छोड़ दिया-" (राजपूताने का इतिहास, पृ० ५६८-५६६) । अस्तु, जैसा कुछ भी हुआ हो, परन्तु यह सब राव रणमल्लजी की ही वीरता और रणकुशलता का फल था, क्योंकि कुंभाजी की अवस्था उस समय करीब १०-११ वर्ष की थी। २. 'वीरविनोद' में लिखा है कि-"चाचा और मेरा को मारने और महमूद को कैद करने से रणमल्ल का अख्तियार दिन-दिन बढ़ता ही गया ।" इससे प्रकट होता है कि मेवाड़ दरबार के ऐतिहासिक भी इन कार्यों का श्रेय राव रणमल्लजी को ही देते हैं । ७७ Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com
SR No.034553
Book TitleMarwad Ka Itihas Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVishweshwarnath Reu
PublisherArcheaological Department Jodhpur
Publication Year1938
Total Pages516
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size369 MB
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