SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 113
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ मारवाड़ का इतिहास १२. राव कान्हाजी यह चुँडाजी के पुत्र थे और ज्येष्ठ पुत्र न होते हुए भी, उनकी इच्छानुसार, उनके उत्तराधिकारी हुए । इनका जन्म वि० सं० १४६५ ( ई० स० १४०८ ) में हुआ था । चूँडाजी की मृत्यु के बाद जाँगँलू का सांखला पुनपाल स्वाधीन बन इधर-उधर लूट मार करने लगा था । यह देख कान्हाजी ने उसे मार कर फिर से उसके अधिकृत प्रदेश पर कब्जा कर लिया और इसके बाद नागोर के आसपास के प्रदेशों को भी, जो चूँडाजी की मृत्यु के कारण राठोड़ों के हाथ से निकल गए थे, दुबारा विजय किया । इस पर उन प्रदेशों के शासक शम्सखाँ के पुत्र खाँज़ादे फ़ीरोज़ से मिल कर उसे नागोर पर चढ़ा लाए । युद्ध होने पर नागोर उसके अधिकार में चला गया और कान्हाजी को अपना निवास मंडोर में कायम करना पड़ा । यह करीब २१ महीने राज्य कर वहीं पर स्वर्गवासी हु । १. राव चूंडाजी ने कान्हाजी की माता के आग्रह ही, अपने ज्येष्ठ पुत्र रामलजी की सम्मति लेकर, कान्हाजी को अपना उत्तराधिकारी नियत किया था । २. राजपूताने के इतिहास में लिखा है कि- ' राव चूंडा के मरने पर उसका छोटा पुत्र मंडोवर का स्वामी हुआ । ( देखो पृ० ५८४ ) परन्तु वास्तव में उस समय नागोर भी कान्हाजी के ही अधिकार में था । लूंडाजी की मृत्यु के बाद शत्रुदल नागोर में केवल लूटमार करके ही लौट गया था ! ३. यह प्रदेश नागोर से २५ कोस उत्तर में है । उस समय इसकी सीमा नागोर प्रान्त की सीमा से मिली हुई थी ४. कुछ ख्यातों में कान्हाजी का करणी नाम की चारण जाति की स्त्री के शाप से नागोर में ही स्वर्गवासी होना लिखा है । उनके लेखानुसार इनकी मृत्यु के बाद वहाँ पर फीरोज़ का अधिकार हुआ था । (करणी राजपूतों और चारणों में देवी की तरह पूजी जाती है। इसका जन्म वि० सं० १४४४ ( ई० सन् १३८७) में हुआ था । यह ( फलोदी प्रान्त के ) सुवाप निवासी ( किनिया शाखा के ) चारण मेहा की कन्या थी और साठीका निवासी (वीटू शाखा के ) चारण दीपा को व्याही गई थी । इसकी मृत्यु का वि० सं० १५६५ ( ई० स० १५३८), में होना माना जाता है । बीकानेरनरेश जैतसीजी का बनवाया इसका एक मन्दिर देसणोक ( बीकानेर -राज्य ) में अब तक विद्यमान है । Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat ६८ www.umaragyanbhandar.com
SR No.034553
Book TitleMarwad Ka Itihas Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVishweshwarnath Reu
PublisherArcheaological Department Jodhpur
Publication Year1938
Total Pages516
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size369 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy