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________________ मारवाड़ का इतिहास राव चूंडाजी के १४ पुत्र थे-१ रिडमल ( रणमल्ल ), २ सत्ता, ३ रणधीरं, ४ हरचंद, ५ भीम, ६ कान्ह, ७ अकमल, ८ पूना, १ सहसमल, १० अज, चारणां, ६ सीयादां (शेरगढ़ परगने के ), १० गडवाडा ( पाली परगने का ) और कालाऊ (शेरगढ़ परगने का ) की भूमि चारणों को। परन्तु इस विषय में निश्चय पूर्वक कुछ नहीं कह सकते । १. कर्नल टॉड ने चूंडाजी के पुत्रों में पूना के स्थान में पुंजका और हरचंद के स्थान में बाघ का नाम लिखा है ( ऐनाल्स ऐंड ऐंटिक्विटीज़ ऑफ़ राजस्थान, भा॰ २, पृ० १४५ )। इसी प्रकार ख्यातों में इनके पुत्रों में राजधर, माला, मूला, गोपा और चाचिगदेव के नाम भी दिए हैं । इसी प्रकार कहीं-कहीं इनके पुत्रों में मांडण, डूंग और रावत के नाम भी लिखे मिलते हैं। २. इसने पिता की मृत्यु के बाद नागोर छोड़कर अवली-पर्वत की उपत्यका में बसे माडोल नामक गांव में अपना निवास कायम किया । ( यह गांव खारची-मारवाड़ जंक्शन से २१ मील पर मेवाड़-राज्य में था।) इस पर जब वहां के स्वामी माला हम्मीर ने आपत्ति की, तब इसके मंत्री (ईदा पड़िहार ) ऊदा ने कुछ दिन तक तो उसे वादों में भुला रक्खा । परन्तु जब वह इस पर चढकर ग्रा गया. तब इसने उसे मार डाला। इसी बीच इसके भाई राव सत्ता ने इसे मंडोर में बुलवा लिया। इसलिये इस घटना के बाद यह वहां चला गया । ३. वि० सं० १४६१ (ई. सन् १४०४ ) में जिस समय इसने दशहरे के दिन चामुंडा के बलिदान के लिये लाए हुए महिष की गर्दन तलवार के एक ही वार में काट गिराई, उस समय लोग इसकी प्रशंसा करने लगे । परन्तु राव चूंडाजी ने कहा कि मैं तो इसे तभी वीर समझंगा, जब यह पूंगल के भाटी राणेंगदेव से अपने चचा गोगादेव का बदला ले लेगा। यह सुन ग्रडकमल ने इस कार्य को करने की प्रतिज्ञा कर ली। ख्यातों में लिखा है कि (लाडणू के निकट के ) छापर-द्रोणपुर के स्वामी मोहिल (चौहान ) माणक राव का विचार पहले अपनी कन्या का विवाह अड़कमल से करने का था । परन्तु बाद में उसने उसे भाटी गणगदेव के पुत्र सादा से व्याह देना निश्चित किया । यद्यपि चूंडाजी के भय से राज़ंगदेव स्वयं तो इस संबंध को करने के लिये सहमत नहीं हुआ. तथापि उसके पुत्र सादा ने यह बात स्वीकार कर ली। कुछ दिन बाद जब सादा विवाह करने को प्रोडीट की तरफ गया, तब मेहराज ने ( जिसका पुत्र माटी राणेंगदेव के हाथ से मारा गया था ) इसकी सूचना अड़कमल के पास पहुँचा दी । यह सुन विवाह कर लौटते हुए सादा को मार्ग में ही दंड देने की नियत से अड़कमल मी कुछ चुने हुए योद्धाओं और मेहराज को साथ लेकर रवाना हुआ । जिस समय यह जसरासर और सादासर गांवों के पास पहुँचा, उस समय इसका सामना नव-वधू को लेकर लौटते हुए सादा से हो गया। युद्ध होने पर सादा मारा गया, और उसकी Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com
SR No.034553
Book TitleMarwad Ka Itihas Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVishweshwarnath Reu
PublisherArcheaological Department Jodhpur
Publication Year1938
Total Pages516
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size369 MB
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