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* दीक्षा *
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भगवान कयंगला पधारे, माघ मास में गरीब वृद्ध लोग गायन कर रहे थे, गोशाला हँसा, लोगों ने मेथी पाक जिमाया (पीटा ) साधु का चेला जानकर छोड़ दिया- गचवें चौमासे के बाद कूपसंनिवेश से गोशालक भगवान् से जुदा. होकर स्वतन्त्र फिरने लगा, प्रकृति के दोष से जहाँ-तहाँ मार पड़ने लगी, घबड़ाकर भगवान् की शोध करने लगा, छः महिने बाद गोशाला पुनः परमात्मा के शामिल हुवा-- सातवें चौमासे में अलंमिका नगरी के देवकुल में बलदेव की मूर्ति के साथ गोशाला कुचेष्टा करने लगा, लोगों ने अच्छी तरह पूजा की (खूब पीटा) एक दफा दन्तासुर स्त्री-पुरुष को देखकर गोशालक ने मजाक की- अहा ! विधाता ने कैसा सुन्दर जोड़ा मिलाया है (?) उन्होंने उसको चौदहवाँ रत्न दिखाया (पीटा) एक वक्त सिद्धार्थपुर से स्वामी ने कुर्मग्राम विहार किया, मार्ग में तिल के एक अंकूर को देखकर गोशाला ने भगवान् को पूछा- यह तिल उगेगा ? स्वामी ने कहा- इस एक अंकुर में सात जीव तिल रूप होंगे, भगवान् का वचन मिथ्या करने को गोशालक ने उस पौधे को उखेड दिया; मगर वृष्टिके योग से मिट्टी गीली होजाने पर तिल का पौधा पुनः पनप गया, वापस लौटते गोशाला ने पूछा वह तिल कहाँ है ? स्वामी ने उत्पन्न तिल का दरख्त दिखाया, गोशाला को यह ठोस विश्वास Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com