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* महावीर जीवन प्रभा *
लोग खीर खासकेंगे ? सिद्धार्थ देव ने कहा- हंडी फूट जायगी, खीर न खा सकेंगे, यत्न कर ने पर भी वैसा ही हुवा, प्रत्यक्ष अनुभव करने से 'यद्राव्यं तद्भवत्येव' जो होनहार होता है वही होता है, यह मत अंगीकार कियाएक वक्त परमात्मा कालाय सनिवेश के उद्यान में पधारे वहाँ एक शून्यगृह में एक जार पुरुष को एक दासी के साथ रति क्रीड़ा करता हुवा देखकर हँसा, उसने उसको पीटा तब प्रभु को कहा- मुझे छुड़ाते क्यों नहीं हो ? सिद्धार्थ ने कहा- ऐसा बेजा बर्ताव मत किया कर- एकदा स्वामी कुमारक सन्निवेश पधारे, वहाँ पार्श्वनाथ के सन्तानिये मुनिश्चन्द्र म०, थे उनके शिष्यों को गोशालक ने पूछा- तुम कौन हो ? उनने कहा- हम निर्ग्रन्थ हैं, गोशाला बोला कहाँ मेरे धर्माचार्य ओर कहाँ तुम ? मेरुगिरी- सरसों जितना फर्क है। मुनियों ने कहा- तू है जैसे तेरे धर्माचार्य भी होंगे; गोशाला ने कहा- मेरे धर्माचार्य के प्रभाव से तुमारा उपासरा जल जाओ; मगर जला नहीं, तब भगवान् को कहा- आज कल आप की तपश्चर्या का प्रभाव घट गया है ! सिद्धार्थ ने उत्तर दिया- धर्म स्थान और साधु महात्मा जल नहीं सकते, गोशालक निराश होगयाएक समय चौरा गाम में लोगों ने उठाईगिरा समझ कर भगवान् के साथ गौशाला को भी कुए में ओंधा लटकादिया, वहाँ साधुवेश मुक्त सोमा-जयन्ती आर्याओं छुड़ाया. Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com