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* दीक्षा *
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अब तक क्यों ठहरे हो ? ज्ञान द्वारा छल जानकर विश्वमान्य मौन रहे.
जब संगम सब तरह थक गया तब भगवान् को ललचाने की कोशीस की- देव ने अपनी ऋद्धि दिखाते हुए कहा- हे मुने! तुमको जो चाहिए सो मांगलो, स्वर्ग चहाता हो तो स्वर्ग दं, देवाङ्गना चाहती हो तो सुन्दर देवाङ्गना दें: बोलो ! क्या चाहते हो ? भगवान ने इस तुच्छ कथन पर जरा भी ध्यान न दिया- उपयुक्त बीस उपसर्गों से रंचमात्र भी स्तवनीय प्रभु चलायमान न हुवे; उस निर्लज्ज देव ने अन्तिम एक और धृष्टता की- घर घर पर आहार-पानी अशुद्ध कर दिया, शिष्य बनकर कुशिष्य की तरह घर-घर कहता फिरा- मेरे गुरु रात को चौरी करने आवेंगे, इससे मैं तलाश करता फिरता हूँ; यह सुन लोग भगान्त को मार पीट करते, यहाँ परमात्मा ने यह प्रतिज्ञा की कि जब तक उपसर्ग उपशमन न होंगे आहार ग्रहण न करूँगा; इस तरह उस दुष्ट-धृष्ट-निकृष्ट-निर्लज संगम देव ने अपनी पैशाचिक वृत्ति से जगत के तारणहार को छः महिने तक कष्ट दिया-पापात्मा संगम खिन्न होकर वापस देवलोक में चलागया, इन्द्र महाराज ने भारी तिरस्कार कर देवाङ्गना सहित उसे देवलोक से निकाल दिया. यह अभव्य ( मोक्ष कभी जा नहीं सकता) का जीव था, इस
ही से अमाप जुल्म गुजारे. Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com