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* महावीर जीवन प्रभा *
उपर्युक्त अभिग्रह लेकर चतुर्मास के १५ दिन शेष रहने पर प्रभु ने वहाँ से विहार कर दिया.
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प्रकाश - दृढ़ प्रतिज्ञा का नाम ही ' अभिग्रह ' है . अप्रीति के स्थान पर ठहरने से क्लेश की जड़ गहरी होती जाती है और कषायों की अभिवृद्धि होती है, इसलिये मुनि को भी यही आदेश है कि अप्रीति-दुर्भाव जहाँ हो वहाँ कतई न ठहरे, संसार भर के लिये यह कर्तव्य उपयुक्त है, चूंकि स्थान छोड़ देने से क्लेश शमन होकर शान्ति निकट आती है; इसलिये यह नियम हर खास व आम को फायदे मन्द है— इन अभिग्रहों में सबसे तगड़ा ' मौनव्रत - मौनशक्ति' ( Silent - force ) है. अत्यन्त आवश्यकता पर भगवान् किसी समय बोले हैं; पर छद्मस्थ अवस्था में अधिकतर मौन ही रक्खा है. मौन से आर्त्त - रौद्रध्यान ( संकल्प विकल्प - आहट्ट दोहट्ट विचार ) और क्रोधादि कषायों का उत्थान रुकता हैं, इससे असहिष्णुता का पराजय होता है ओर सहन शक्ति का आविर्भाव होता है, इससे प्रपंच सर्वथा हट जाते हैं और जीवन उन्नति के मार्ग पर गतिमान होता है; इसके अतिरिक्त इससे, स्वाध्याय ध्यान-समाधि आदि सफल होते हैं और आत्म-विकाश होने लग जाता है; अतः मुमुक्षु इसे अवश्य अपनावें .
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