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* दीक्षा *
( अभिग्रह) विचरते हुए भगवान् 'मोग्क सनिवेश' पधारे, वहाँ सिद्धार्थ नृपेन्द्र का मित्र ‘दुइजन्त ' तापस के आश्रम में पधारे, ज्ञात होते ही तापस सन्मानार्थ सामने आया पूर्व परिचय के कारण उससे प्रेम पूर्वक मिले, वर्षाकाल में अपने ही आश्रम में ठहरने की तापस ने प्रार्थना की, इससे परमात्मा ने वहीं चतुर्मास किया; देवयोग से वर्षा न होने के कारण पशुजन झोंपड़ी का घाम खाने लगे, पर भगवान् उनको नहीं हकालते , तब तापस कठोर उलहना देता- अहो आर्य ! तुम बडे प्रमादी हो जिस कुटि में रहते हो उसका भी रक्षण नहीं कर सकते तो और क्या कर सकोगे ! यह सुन प्रभु वहाँ से विहार कर गये ; कारण कि जहाँ अप्रीति हो वहाँ मुनी नहीं ठहरते . इस वक्त महावीर देव ने पाँच अभिग्रह ( प्रतिज्ञाएँ) धारण किये१-अप्रीति के स्थान पर ठहरना नहीं . २-छद्मस्थावस्था तक मौन से काउसग्ग ध्यान में रहना. ३-सदा खड़ा रहना-बैठना और सोना नहीं. ४-गृहस्थ का सम्मान सत्कार नहीं करना.
५-करपात्र में आहार करना . Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com