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*जन्म:
[४९ उसके लिए जितना किया जाय उतना ही कम है, क्या आपने ऐसा जन्माभिषेक किसी अवतारी पुरुषोत्तम का या सम्राट् का हुवा कहीं सुना है या पुस्तक पन्नों में बाँचा है ? अद्वितीय महा पुरुषों के मुकाबिले में कौन खड़ा रह सकता है- अहा ! इन्द्रों की और देव-देवियों की कैसी उत्कट भावना, किस कदर आनन्द लहरों का लहराना, तमाम दैविक सुखों को छोड़कर भाग्यवन्त ही ऐसे अनुपम अभिषेक में शरीक हो सके थे; आज तो अभिषेक के पुण्य कार्य का विरोध करने वाला दल उत्साह और भावना तत्व से अज्ञात है, उसको निष्पक्ष बुद्धि से विचारना चाहिए. अंगुष्ठ का दाव भगवान् के अनन्त बल का परिचायक है, जन्मते ही उनमें इतना बल था कि हजारों चक्रवर्ती जिसकी तुलना नहीं कर सकते, आगे आप जान सकेंगे कि इस अतुल बल का आक्रमण या रक्षण में उनने उपयोग नहीं किया, किन्तु आत्मोनति में ही अपना पराक्रम काम में लाये, इस आदरणीय पुण्यकृत्य के अनुमोदन से ही आप पुण्योपार्जन कर सकते हैं.
( जन्म महोत्सव )
अब महाराजा सिद्धार्थ कृत जन्म महोत्सव का बयान करते हैं
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