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* महावीर जीवन प्रभा *
हे मात ! मैं पहिले देवलोक का इन्द्र हूँ, चौवीसवें तीर्थकर आपके पुत्र-रत्न का जन्माभिषेक करने आया हूँ; हे रत्नकूक्षिधारिके ! आपको नमस्कार हो, ऐसा कहकर अवस्वापिनी निन्द्रा (नियत कालीन निद्रा) देकर माता के पास मंगलार्थ भगवान का प्रतिबिंब रखकर अपने पाँच रूप बनाता है- १ एक रूप से परमात्मा को दोनों हाथों से उठाता है- २-३ दो रूपों से दोनों तरफ चामर ढा. लता है-४ एक रूप से प्रभु पर छत्र करता है-५ और पाँचवें रूप से आगे वज्र उछालता हुआ चलता है। इस प्रकार सोधर्मेन्द्र मेरुगिरी पर पाण्डुक बन में मेरु शिखर से दक्षिण दिशा में अति पाण्डुक कम्बल नामक शिला पर रहे हुए सिंहासन पर भगवन्त को गोद में लेकर पूर्वाभिः मुख बैठता है.
वहाँ पर रहे हुए सर्व इन्द्र अपने अपने देवों को आज्ञा करते हैं- अहो देवो! १००८ स्वर्ण कलश १००८ रजत कलश १००८ रत्नों के १००८ सोना चान्दी के १००८ सुवर्ण रत्नों के १००८ रजत रत्नों के १००८ सुवर्ण रजत रत्नों के और १००८ मिट्टी के कलश पवित्र जल से भर के लाओ; सर्व ८०६४ आठ हजार चौसठ कलश हुए-वे नाप में२५ योजन ऊँचे २५ योजन विस्तार
वाले और एक योजन नाली वाले होते हैं- वे तमाम Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com