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* जन्म*
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देव दुंदुभी बजने लगी, तमाम जीव उस वक्त सुखी बन गये थे, यहाँ तक कि निरन्तर वेदना- दुःख के भोक्ता नरक के नारकों को भी क्षण भर शान्ति मिली थी, भगवान् के जन्म समय समग्र मेदिनी उल्लसित होगई थी; यानी सर्वत्र आनन्द ही आनन्द छा रहा था.
प्रकाश- यह तो निर्विवाद है कि पुण्यशाली के अवतार से कौटुम्बिक जातीय , नागरिक और राष्ट्रीय लोगों में अमन चैन होजाता है , इस वक्त भी इसका कुछ अंश मौजूद है तो जगत्तारणहार का जब जन्म हो तब त्रिलोक में आनन्द वर्षे उसमें कोइ अतिशयोक्ति नहीं है; क्या आपभी ऐसी उत्तम करणी पर नज़रशानी करेंगे कि जिससे भावि जन्म योग्य बने.
( सौतिक कम) भगवन्त का जन्म होते ही सब से प्रथम छप्पन दिक्कुमारियों के आसन कम्पित हुएं, अवधिज्ञान से परमात्मा का जन्म जानकर इस प्रकार भक्तिपूर्ण कार्य करने लगीं
भोगंकरा आदि आठ दिककुमारियों ने अधोलोक से आकर भगवन्त और उनकी माता को नमस्कार कर
संवर्तक वायु द्वारा योजन प्रमाण भूमि शुद्ध करके एक Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com