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* गर्भावस्था *
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और सभाजन अत्यन्त प्रमुदित हुए, महाराणी त्रिसला भी आनन्दित हुई- महाराजा सिद्धार्थ ने वरस्त्रा- भूषण देकर पाठकों का सत्कार किया, भोजन कराया और जमीन भेंट की.
प्रकाश-पुण्य का पुंज रूप पुत्ररत्न जब गर्भ में आता है तब जननी को ऐसे बढ़िया स्वप्न आते हैं- उस आदर्श दम्पति की सांसारिक चर्या सदाचार से अभियुक्त थी, जिसके शयन का कमरा तक अलग था, फिर शय्या की तो बात ही क्या ? कितनी पवित्रता और अनुकरणीय मर्यादा थी उनकी रति-क्रीड़ा अत्यन्त मर्यादित थी; आज के लोग जो विषय कीट बने रहते हैं, उनको इससे पाठ सीखना चाहिए - महारानी त्रिसला अपने पतिदेव के साथ कितने अदब से पेश आई और आज की सुन्दरियाँ कितनी बत्तमीज हैं, इसकी तुलना कर बोधग्रहण करो- एक महा पुरुष के गर्भ में अवतरते ही पुण्य प्रकाश फैलने लगता है, जनता हर्षित होजाती है; अतः दूमरों को सुखी बना कर पुण्य उपार्जन करना चाहिए.
( धन वृद्धि और धान्य वृष्टि )
जिस दिन से भगवान् त्रिसलादेवी की कूक्षि में अवतरे उस दिन से शक्रेन्द्र के आज्ञानुसार तियग्- जृम्भक देवोंने
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