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* महावीर जीवन प्रभा *
जाली ३३ फूलमाली ३४ धनुर्वादी ३५ मंत्रवादी ३६ तन्त्रवादी ३७ ज्योतिर्वादी ३८ दण्डधर ३९ धनुष्यधर ४० खड्गधर ४१ छत्रधर ४२ चामरधर ४३ पताकाधर ४४ ध्वजाधर ४५ दीपधर ४६ पुस्तकधर ४७ झारीधर ४८ ताम्बूलधर ४९ प्रतिहार ५० शय्यापालक ५१ गज पालक ५२ अश्व पालक ५३ अंगमर्दक ५४ देहरक्षक ५५ थोड़ा बोला ५६ कथा बोला ५७ सत्य बोला ५८ गुण बोला ५९ समस्या बोला ६० पारसी बोला ६१ व्याकरण बोला ६२ तर्क बोला ६३ साहित्य बंधक ६४ लक्षण बंधक ६५ छन्द बंधक ६६ अलङ्कार बंधक; इत्यादि परिवारयुक्त धवल मेघ में निकलते हुए सूर्य समान महाराजा सिद्धार्थ आकर पूर्वाभिमुख सिंहासन पर विराजे, छत्र रक्खा गया, चामर दूलने लगे, चारों ओर से लोग जय-जय शब्द बोल रहे थे, शीघ्रही राजेन्द्र ने आदेशी पुरुषों को आज्ञा की
तुम लोग शीघ्र ही जाकर अष्टाङ्ग निमित्त के ज्ञाता स्वम पाठकों को बुलालाओ, वे प्रसन्नता से आदर पूर्वक उनको बुला लाये, उनने पार्श्वनाथ रक्षक-गर्भित आशिर्वाद दिया
और नरेन्द्र के संकेतानुसार स्थापित भद्रासनों पर बैठ गये, समीप में ही महारानी त्रिसलादेवी एक मौलिक भद्रासन पर बैठी थीं- महाराजा ने गत रात्री के स्वम दर्शन की Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com