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* पूर्वकाल *
बनवाना नहीं, जूती पहनना नहीं और किसी सवारी में बैठना नहीं; यानी लुंचन कराना, नंगे पैर रहना और पैर पैदल चलना (७) विहार में वरत्र-पात्रदि का अपना वजन खुद उठाना, यानी गृहस्थ को उठाने नहीं देना (८) पैसा रख नहीं सकते, उसे छतक नहीं सकते-पैसा इन्द से तमाम प्रकार के सिक्खे, नोट वगैरः जानना (९) बालिका-युवतियाँ वृद्धा; अर्थात् स्त्रीमात्र को स्पर्श नहीं कर सकते (१०) अग्नि को, कच्चे अनाज को, कच्चे जल को और कच्चे फल को छूतक नहीं सकते; चाहे शीतकाल हो या उष्णकाल हो, भूखे हों या प्यासे हों; सब ही सहन करना होता है इसके अतिरिक्त (१) व्रत-नियम पालन का पूरा ध्यान रखना होता है (२) सीनेमा-थीएटर-सरकस-मदारीखेलइन्द्रजाल-राज्य सवारी-धार्मिक के अतिरिक्त प्रत्येक प्रोसेसन (जलूस) आदि देखना नहीं (३) व्यर्थ डौलते फिरना नहीं (४) लबाड़पन-व्यर्थ वकवाद-मृषाभाषण-मार्मिक वचनादि कुत्सित भाषाओं त्याग करने का पूर्ण प्रत्यन कर सत्य-मधुरी और अर्थपूर्ण भाषा बोलते हुए मितभाषी बनना होता है। यानी संयमित भाषा होनी चाहिए (५) सोना उठना-बैठना-चलना-खाना-पीना-पहनना-बोलना; इत्यादि तमाम बर्ताव यत्नापूर्वक किये जाने चाहिए-मनिवरों के आचारों का यह संक्षेप उल्लेख किया गया; ग्रन्थ गौरव
के कारण उनके उन्नत विचारों का उल्लेख नहीं किया गया है. Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com