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* महावीर जीवन प्रभा *
हुए, मेरे पिता चक्रवर्ती हैं, मैं इन दोनों से एक वासुदेव पद अधिक प्राप्त करूँगा; इस कुलमद से यहाँ नीचगोत्र उपार्जन हुवा - भगवान् के कथनानुसार उन्नीसवें भाव में पोतनपुर नगर में ' त्रिपृष्ट' नाम का पहिला वासुदेव हुबा और तेवीसवें भव में 'प्रियमित्र' नामक चक्रवर्ती हुवा; अन्त में दीक्षा ली, एक क्रोड़ वर्ष चारित्र पालकर समाधि पूर्वक मृत्यु हुई; एवं सत्तावीसवें भव में तीर्थंकर हुए.
प्रकाश - जैन मुनियों का चारित्र इतना कठिन है कि मरीचि जैसे भी उसके पालन में असमर्थ सिद्ध हुए चारित्र की रूपरेखा ( Out-Line ) इस प्रकार है(१) मुनिजन माधुकरी भिक्षा लाकर अपना निर्वाह करते
हैं, वह भी नीरस, दोषमुक्त और एक वक्त लाई जाती है,
योग्य मुनिजनों के अतिरिक्त आहार किसी को दे नहीं सकते, फेंक नहीं सकते और सिलक रख भी नहीं सकते रात्री के समय जल तक त्याग कर दिया जाता (२) प्रमाणोपेत श्वेतवस्त्र रखना होता है, वह भी जहाँ तक संभव हो अल्प मूल्य का हो और सादा हो, वस्त्रों का संग्रह हो नहीं सकता, किसी को दिया नहीं जा सकता (३) काष्ट के, मिट्टी के या तुम्बे के पात्र रक्खे जाते हैं; वे भी अल्प संख्या में हों, इन का भी संग्रह नहीं हो सकता और किसी को दिया नहीं जा सकता ( ४-६) बाल
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