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* महावीर जीवन प्रभा *
और सर झुकाने में ही मिल गया, यह बड़े सस्ते भाव का है। ऐसी मजाक उड़ाएंगे मगर उनका कहना समझदारी से परे है, श्रद्धा और भावना तत्व से वे अज्ञात हैं- त्यागी महात्माओं को चाहे लुखा और नीरस ही आहार दिया जाय; एवं सामान्य ही अभिवन्दन किया जाय; लेकिन उग्रभावना एक बड़े दर्जे ( Standered ) पर पहुँचा देती है, तो सम्यक्तव का प्राप्त होना कोई अतिशयोक्ति नहीं है. इससे आप सुपात्र दान का पाठ सीरव कर कार्यान्वित करें,
भगवन्त के तीसरे भव में तीर्थंकर भव का खुलासा होगया- परमात्मा ऋषभदेव स्वामी के उपदेश से अपने पुत्र भरत चक्रवर्ती के ५०० पाँच सौ पुत्रों ने और ७०० सात सौ पौत्रों ने भवतारिणी दीक्षा अङ्गीकार की; उनमें मरीचि नामक भरत का पुत्र था, उससे खड्गधारा समान दीक्षा न पलने से साधुवेष त्याग कर त्रीदण्डी का बाना धारण किया- लोच न कराकर मस्तक मंडाने लगा, पैरों में खड़ाउ रखने लगा, बल के लिए कमण्डलु धारण किया, गेरु के रंगे वस्त्र पहनने लगा; मतलब कि साधुपद की तमाम क्रियाओं को स्तिफा देदिया: समवसरण के बाहर इस ढंग से रहने लगा, आगन्तुक लोगों को उपदेश देकर
भगवन्त के पास दीक्षा दिला दिया करता था- एक वक्त Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com