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* पूर्वकाल *
देवलोक के देव २७ तीन लोक के गुरु महावीर भगवान् हुए.
वीस भवों में से आवश्यकीय कतिपय भवों का संक्षिप्त वर्णन करेंगे; शेष भवों का ग्रन्थान्तरों से जान लेना चाहिए.
भगवन्त महावीर देवने पहिले भव में सम्यक्त्व उपार्जन किया- इस जम्बूद्वीप के पश्चिम महाविदेहान्तरगत प्रतिष्ठान पट्टन में नृपेन्द्र का नयसार नामक एक ग्राम चिन्तक था, राजा की आज्ञानुसार बहुत से नौकर और गाड़े साथ में लेकर लकड़ी लेने बन में गया, सव भृत्यों अपने अपने काम में व्यस्त थे और नयसार एक वृक्ष की साया में बैठा हुवा था; इस वक्त संघ से बिछुड़े हुए कितनेक साधु महाराज वहाँ पधारते देखे, तत्काल ही नयसार उठ कर सन्मुख गया, बन्दन किया और आदरसहित अपने स्थान पर ले आया, प्रार्थना पूर्वक उग्र भाव से अपने लिये लाये हुए भाते में से आहार दान दिया; यानी बहराया, उनसे धर्मोपदेश सुना और उन्हें रास्ता बता दिया- आहार दान से और वन्दन से नयसार ने यहाँ सम्यक्त्व उपार्जन किया.
प्रकाश-टीका टिप्पणी करने वाले यहाँ तुरन्त ही बोल उठेंगे कि अत्यन्त दुर्लभ सम्यक्त्तवरत्न रोटियों
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