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* कैवल्य *
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प्रकाश - परिवार का होना भी एक किस्म का पुण्य है, अनुकूल और अच्छे परिवार का होना विशेष पुण्य का प्रभाव है, और त्यागी परिवार का होना आदर्श पुण्य का प्रकाश है; इस ही लिये साधुजन भी शासनोन्नत्ति के लिये, और दीक्षितों के कल्याण के लिए अपना समाज बढ़ाते हैं- अपनी ख्याति के लिए, सेवा के लिए या मात्र वृद्धि की बुद्धि से जो अपने समुदाय को बढ़ाता है या चेष्टा करता है, वह उसका अनुत्तम मार्ग है- भगवान् का परिवार तो चुनन्दा था, एक एक से बढ़िया मुक्ताफल था, मोतियों की माला समान संघ था- वर्तमान के उद्धत लोग तो संघ को हाड़कों का माला बोलते हैं- महातपस्वी - परमत्यागी और क्रियावन्त आदर्श संघ था- आज के संघ की अस्तो - व्यस्त दशा है, यह सब निर्नायकता का प्रताप है अब सुन्दर जमाना आरहा है, संघ का संगठन कर महावीर - शासन का विस्तार बढ़ाना चाहिये -- संघ कायम रहे, वृद्धिगत हो, इस पर पूरा लक्ष होना चाहिए, इस ही से शासन का अस्तित्व और जाहोजलाली कायम रहेगी- पाठको ! आप भी इसमें सहायक बन कर अपना कर्तव्य अदा करें.
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