________________
१३०]
* महावीर जीवन प्रभा *
कर, भड़का कर, ललचा कर, भगा कर, छिपा कर, झगडा कर व्रत यावत् दीक्षा देदेते हैं; यह अनिष्ट मार्ग है, जनता को इस भ्रम जाल में नहीं फंसना चाहिए और धर्मोपदेशकों को ऐसा अहित कर मार्ग नहीं आचरना चाहिए: इससे स्व-पर का अकल्याण होता है, जनता और मुनिवरों को सावधान होकर महावीर के पदानुसार चलना चाहिए। जिससे श्रेय प्राप्त हो. वाँचको! यह विषय जरा सूक्ष्मदृष्टि से विचारणीय है- धर्म-रुचि पैदा करना, सब से श्रेष्ठ उपदेश है.
(भगवान का परिवार)
महावीर देव के हस्तदीक्षित साधुजन १४००० थे, आर्याएँ ३६००० थीं, श्रावक १५९००० थे, श्राविकाएँ ३१८००० थीं; यह चतुर्विध संघ भगवान् का हस्तदीक्षित और शिक्षित था- यों तो आप के शासन में अधिक प्रमाण में संघ विद्यमान था- इनमें से ३०० चौदह पूर्वधारी हुए, १३०० अवधि ज्ञानी, ७०० केवली भगवान् , ७०० वैक्रीय-लब्धिवन्त, ५०० मन:पर्यव ज्ञानी ४०० अजित वादी हुवे; जिनसे वाद में इन्द्र भी नहीं जीत सकता था इनके अतिरिक्त आप के उपासक ४०००००००० चालीस करोड़ जैन थे.
Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat
www.umaragyanbhandar.com