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* महावीर जीवन प्रभा *
सुन कर तमाम ऐशोआराम का त्याग किया, मात-पिता की सम्मति लेकर भागवती दीक्षा अंगीकार करली; प्रथम रात्री में ही संयम से भाव गिर गये- बनाव ऐसा बना कि छोटे होने के लिहाज से सब से आखिर संथारा (विस्तर) उनका लगा, अन्तिम किनारे पर होने के कारण मुनियों के आवागमन से संथारा मिट्टी से भरगया और ठोकरों का कष्ट भी हुवा; इससे उनने सोचा "पहिले दिन ही ऐसा वर्ताव है तो जिन्दगी कैसे तेर होगी, सवेरे भगवान् को पूछ कर वापस घर चला जाऊँगा" दर्शनार्थ भगवान् के पास पहुंचते ही रात्री की बात और उनके विचार प्रभु ने बिना पूछे व्यक्त करदिये और उनको उपदेश किया
हे मुने ! गत भव में तू विंध्याचल पर्वत पर 'मेरुपम' नाम का चार दान्तवाला सुन्दर हाथी था; वहाँ दावानल लगने से अपनी रक्षा के लिए एक मण्डल बनाया, पर तेरे पहुँचने के पहिले ही भयाक्रान्त जीवों से वह भरगया था, तेरे लिए आराम से बैठने जितनी भी जगह नहीं थी, एक तरफ थोड़ी सी खाली जगह थी, वहाँ तू पैरों के बल खड़ा रहा, उस समय तेरे खुजली चलने से एक पैर ऊंचा उठाया कि शीघ्र ही एक खरगोस आकर बैठ गया, उसे देखकर तुझे बड़ी करुणा उत्पन्न हुई इससे तीन पैरों पर खड़ा रहा, चौथे दिन दावानल खत्म होने पर सब जीव
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