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* कैवल्य *
कितना बढ़िया मिलता है और आपका मानव भव कितना आनन्दित बन जाता है; सुनिये ! भूलना मत, इससे जरूर शिक्षा ग्रहण कर उसका अमल करिये .
(संघ स्थापना) चौदह विद्या निधान गौतम स्वामी (गौतम ऋषी) ने दीक्षा लेकर परमात्मा से पूछा- भगवन् ! 'किंतत्वं' ? यानी वत्व क्या है ? प्रभु ने फरमाया-'उपन्नेह वा' यानी वस्तु की उत्पत्ति होती है, यह सुनकर विचार किया कि यदि सदा उत्पत्ति होती रहेगी तो इस परमित क्षेत्र में कैसे समावेश होगा ! तब फिर पूछा- स्वामिन् ! 'पुनः किंतत्वं ?' और क्या तत्व है ? उत्तर मिला- 'विगमेह वा' वस्तु का नाश होता है. फिर संदेह हुवा कि यदि नाश होता रहेगा तो जगत म्वाली होजायगा और उत्पत्ति किसी मसरफ की न रहेगी; अतः फिर पूछा- देव ! ' पुनः किं तत्वं' और क्या तत्व है ? जबाब मिला- 'किंचिय धूएइ वा' यानी कितनेक काल तक वस्तु स्थिर रहती है- सदा उत्पत्ति विनाश तो पुद्गल धर्म है और सिथिर त्व जीव धर्म है. यह जगत् शास्वत है १ जीव २ पुद्गल ३धर्म ४ अधर्म ५ आकाश; इन द्रव्यों के आवर्तन-परावर्तन से लोक व्यवहार होता है. इस त्रिपदी से इन्द्रभूति ने जगत् का स्वरूप जान लिया, एक मुहूर्त मात्र (४८ मिनिट)
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