________________
११२]
* महावीर जीवन प्रभा *
छात्रों से आडम्बरपूर्ण इस प्रकार विरुदावली बोली जा रही थी
सरस्वती कण्ठाभरण, पण्डितश्रेणि शिरोमणि, ज्ञात सर्वपुराण, शब्द-लहरी तरङ्ग, चतुर्दशविद्याभार, षट्रदर्शन गोपाल, रंजितो अनेक भूपाल, सखीकृतवृहस्पति, निर्जित शुक्रमति, प्रत्यक्षभारती, कुमतान्धकारनभोमणि, वादी कदलीकृपाण, जितवादिवृन्द, वादी-गरुड़गोविन्द , वादीघण्ट मुद्गर, वादीगोधूक भास्कर, वादीसमुद्रअगस्ति, वादी-वृक्षहस्ति, वादीसिंह शार्दूल, वादीवाद मस्तक शूल, वादीगोधूम घरट्ट, मर्दितवादी मद, वादीकन्द कुद्दाल, वादीलोक भूमिपाल, वादीमौन शास्त्रागार वादीअन्नदुर्मिक्षकार, वादीगजसिंह , वादीह्रदय साल , वादीयुद्धभाल, वादीवाद खण्डक, वादीमुख भंजक, जितानेक वाद , सरस्वतिलब्ध प्रसाद; इत्यादि गर्वपूर्ण विरुदावली को सुनता हुवा इन्द्रभूति समवसरण के निकट पहुँचा.
भगवन्त की योजन गामिनी वाणी सुनकर गौतम ऋषि मन में सोचने लगा- "क्या समुद्र गजेता है या गंगा नदी प्रबल प्रवाहपूर्ण बहती है, अथवा ब्राह्मण वेद
यनि कर रहे है ! यह है क्या ?" इस तरह गुनगुनाते हुए समवसरण के प्रथम सोपान पर पैर रक्खा, परमात्मा
Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat
www.umaragyanbhandar.com