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________________ શિલાલેખ અને અનુવાદે. सब इन्तजामवाली, उस दराड़ के बीच दीख पडी नाली से विस्तृत सेतु...(1)...गर्भ से लेकर अविहत और समुदित राजलक्ष्मी के धारण के गुण के कारण सब वर्गों के द्वारा रक्षण के लिए पति (राजा ) रूपमें वरे गये, युद्ध के सिवाय मरते दम तक कभी पुरुषका वध न करने की अपनी प्रतिज्ञा को सत्य कर दिखलाने वाले, सामने आये हुए बराबर के शत्रुको चोट देकर निकम्मे शत्रु....करुणा धारण करने वाले, अपने आप शरण में आये झुके जनपदको आयु और शरण देने वाले, डाकू, व्याल, जंगली जन्तु रोग आदि जिन्हें कभी छू नहीं पाते एसे नगर निगमोंपं. ११ और जनपदोंकी अपने वीर्य से अर्जित अनुरक्त प्रजाओंसे आबाद पूरबी आकर, पच्छिमी आकर, अवन्ति, अनूपदेश, आनर्त, सुराष्ट्र, श्वभ्र, (श्वभ्रमति–साबरमती का कांठा ) मरु, कच्छ, सिन्धु-सौवीर, कुकुर, अपरान्त, निषाद आदि....सब प्रदेशों के जो कि उसके प्रभावसे....अर्थ, काम, विषयों को..स्वामी, सर्व क्षत्रियों में प्रकट की हुई (अपनी) पं. १२ वीर पदवी के कारण अभिमानी बने हुए और किसी तरह काबू न आनेवाले यौधेयों को जबरदस्ती उखाड़ देने वाले, दक्षिणापथपति सातकर्णि को दो बार खुली लडाई में जीत करभी निकट सम्बन्ध के कारण न उखाडने से यश प्राप्त करने वाले.... विजय पाने वाले, गिरे राजाओं के प्रतिष्ठापक अपने हाथको यथार्थपं. १३ रूप से उठा कर (=लगातार ठीक ठीक न्याय करते रहेने के कारण ) दृढ धर्मानुराग का अर्जन करने वाले, शब्द ( व्याकरण ) अर्थ ( अर्थशास्त्र ) गान्धर्व ( संगीत ) न्याय ( तर्कशास्त्र ) आदि बड़ी बड़ी विद्याओं के पारण ( पारंगत होने ) धारण ( स्मरण ) ___ विज्ञान ( समझने ) और प्रयोगसे विपुल कीर्ति पानेवाले, घोड़े, हाथी, रथ चलाने तलवार ढाल के युद्ध आदि....अत्यन्त बल फुर्ती, सफाई दिखाने वाले, दिन-ब-दिन दान मान करने तथा अनुचित बर्ताव से परहेज रखने वाले, पं. १४ स्थूल लक्षवाले, उचितरूपसे पाई बलि ( मालगुजारी ) शुल्क ( चुंगी ) और भाग ( राजकीय अंश ) से-सोना, चांदी, वज्र, वैडूर्य रत्नों के ढेरों से भरपूर कोश वाले, स्फुट लघु, मधुर, विचित्र, कान्त शब्द संकेतों द्वारा उदार अलंकृत गद्य, पद्य....लंबाई, चौडाई, ऊंचाई, स्वर, चाल, रंग, सार, बल आदि १ राजा हाथ उठा कर अपना न्याय-निर्णय सुनाता था। Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com
SR No.034542
Book TitleMahakshatrap Raja Rudradama
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVijayendrasuri
PublisherYashovijay Jain Granthmala
Publication Year1938
Total Pages96
LanguageGujarati
ClassificationBook_Gujarati
File Size5 MB
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