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श्रीजैन श्वेताम्बर तेरापंथी सम्प्रदाय
संक्षिप्त इतिहास।
प्रथम प्राचार्य श्री भीखणजी महाराज श्रीजैन श्वेताम्बर तेरापन्थी मतके प्रवर्तक प्रातःस्मरणीय श्री श्री १००८ श्री श्री भीखणजी स्वामीका जन्म आषाढ़ सुदी १३ सं० १७८३ ( जुलाई १७२६ ई०) को मारवाड़ राज्यके कंटालिया ग्राममें हुआथा। उनके पिता का नाम बलूजी सुखलेचा तथा माताका नाम दीपांबाई था। साह बलूजी ओसवाल जातिके थे । वे बड़े ही सज्जन प्रकृतिके थे। दीपांबाई भी अपनी सरल और भद्र प्रकृतिके लिए प्रसिद्ध थीं। ऐसे ही पुण्यवान माता-पिताके घर स्वामी भीखणजीका जन्म हुआ था।
स्वामी भीखणजीको बाल्यावस्थासे ही धर्मकी ओर विशेष रुचि थी। उनके माता पिता गच्छवासी सम्प्रदायके अनुयायी थे इसलिये पहले पहल इसी सम्प्रदायके साधुओंके पास भीखणजीका आना-जाना शुरू हुआ। परन्तु वहां पर इनके हृदयकी प्यास न बुझी और सच्चे तत्वानुसंधानके लिये वे पोतियाबन्ध साधुओंके यहां गमनागमन करने लगे। बहुत दिनों तक वे उनके अनुयायी रहे परन्तु वहां भी उन्होंने बाह्याडम्बरकी अधिकता और सच्चे धार्मिक लगनका प्रभाव अनुभव किया। अतः उन्हें छोड़ कर वे जैन श्वेताम्बर स्थानकवासी सम्प्रदायकी एक शाखा विशेषके आचार्य श्रीरुघनाथजीकी भक्ति करने लगे । जिनके हृदयमें वैराग्यकी तीव्र भावना स्थान पा जाती है उन्हें जब तक उस भावनाके अनुकूल संग नहीं मिलता, तब तक सच्चे मार्ग का अनुसंधान करते ही रहते हैं। हृदयकी वैराग्य भावना जितनी ही अधिक तीव्र होती है, अनुसंधानका वेग भी उतना ही जोरदार रहता
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