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( १५ ) दीक्षा दी थी। उनका देहावसान ४२ वर्षकी अपेक्षाकृत कम अवस्थामें ही हो गया था। उनका देहावसान सं० १६५४ की कार्तिक बदी ३ को सुजानगढ़में हुआ था। आप कोई पाटवी नहीं चुन गये थे इसलिये प्रायः २।। महीना तक आचार्य पद पर कोई भी न रहे। परन्तु शासन का संगठन और मर्यादायें इतनी सुन्दर थी कि जहाँभी साधुसंत थे वे अपनेमें जो बड़े दीक्षित थे उनकी आज्ञा मूजव चलते रहे। चोमासेके बाद जब अधिकांश साधु लाडनूंमें एकत्रित हुए तब सर्वसम्मतिसे स्वामीजी डालचन्दजीको आचार्य पदवी दी।
___ सप्तम आचार्यसातवें आचार्य श्री श्री १००८ श्री श्री डालचन्दजी स्वामीका जन्म उज्जैन (मालवा ) में मिती आषाढ़ सुदी ४ सं० १६०६ को हुआ था। इनकी दीक्षा भी बाल्यावस्थामें इन्दोरमें हुई थी तथा लाडनूमें वे प्राचार्य पद पर अवस्थित हुए थे। उनके पिताका नाम कानीरामजी पीपाड़ा और माताका नाम जड़ावांजी था। इनका देहावसान ५७ वर्षकी अवस्थामें सं० १९६६ के भाद्र मासमें लाडनूं में हुआ। उन्होंने ३६ साधु और २२५ साध्वियां दीक्षित की।
अष्टम आचार्यआठवें प्राचार्य, श्री श्री १००८ श्री श्री प्रातःस्मरणीय श्री कालुरामजी महाराजका जन्म मिती फाल्गुन शुक्ला २ सं० १९३३ को छापर (बीकानेर) में हुआ था। आपके पिताजी का नाम मूलचन्दजी कोठारी और माताका नाम छोगांजी था। आपकी दीक्षा सं० १९४४ मिती आसोज सुदी ३ को आपकी माताजी सती छोगांजीके साथही बिदासरमें हुई थी। दीक्षा संस्कार पांचवें आचार्य स्वामी मघराजजी महाराजके हाथसे हुआ था। पूज्यजी महाराज स्वामी डालचन्दजीके देहावसानके बाद आपको पाट गद्दी मिली। पापको सं० १६३६ मिती भादवा सुदी १५ को प्राचार्य पद मिला था। आपकी माता सती
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